जैन संस्कार विधि – गौरवशाली विरासत” विषयक कार्यशाला का आयोजन
साहूकारपेट, चेन्नई : संस्कृति का सम्मान अपनी विरासत का सम्मान हैं। संस्कृति समाज की जड़ो को हराभरा रखती है। उपरोक्त विचार साध्वी डॉ मंगलप्रज्ञाजी ने कहे।
अभातेयुप के तत्वावधान में तेयुप चेन्नई की आयोजन में “जैन संस्कार विधि – गौरवशाली विरासत” विषयक कार्यशाला में साध्वीश्री ने आगे कहा कि जैन परम्परा के एक विशाल वटवृक्ष की शाखा हैं चतुर्विध संघ – साधु, साध्वी, श्रावक, श्राविका। साधु-साध्वीयाँ आध्यात्मिक जीवन जीते हैं, उनका मूल लक्ष्य आत्मानुमुंखी बनना और औरों को भी प्रेरित कर उस मार्ग पर गतिशील बनाना। श्रावक गृहस्थ जीवन जीता है, परिवार-समाज में रहता है। गृहस्थ जीवन के सामाजिक कार्यों में अपनी संस्कृति का समावेश होना चाहिए। आचार्य श्री तुलसी सप्नदृष्टा थे। उनके अनेकों स्वप्न में एक था – जैन संस्कार विधि। श्रावक समाज अपने हर सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक कार्यो में जैन संस्कार विधि का समावेश करें।
साध्वी श्रीजी ने विशेष प्रेरणा देते हुए कहा कि संस्कृति से जुड़ने का महान उपक्रम है जैन संस्कार विधि। मोमासर के भोजराजजी संचेती से प्रारम्भ संस्कारकों की आज लम्बी श्रृंखला बन गई है। आज अनेकों सामाजिक कार्यों में जैन संस्कार विधि का समावेश हो रहा है, और भी ज्यादा से ज्यादा इसका अपने कार्यों में समावेश हो।
इस अवसर पर तेयुप चेन्नई की आयोजना में उपासक जैन संस्कारक श्री पदमचन्द आंचलिया, उपासक जैन संस्कारक श्री स्वरूप चन्द दाँती, जैन संस्कारक श्री हनुमान सुखलेचा ने जैन संस्कार विधि की महत्ता बताते हुए दीपावली पूजन को जैन संस्कार विधि से मनाने का डेमो बताया। इस अवसर पर अभातेयुप पुर्वाध्यक्ष श्री गौतमचन्द डागा, तेयुप चेन्नई सहमंत्री श्री कोमल ड़ागा, श्री दिलीप गेलड़ा, तेरापंथ सभाध्यक्ष श्री उगमराज सांड, जैन विश्व भारती के संयुक्त मंत्री श्री विमल चिप्पड़, ट्रिप्लीकेन ट्रस्ट बोर्ड के मुख्य न्यासी श्री सुरेश संचेती, तेयुप सदस्यों के अलावा गणमान्य व्यक्तिव उपस्थित थे। मंगलाचरण श्री अशोकजी लूणावत ने भगवान महावीर को समर्पित गीत से किया। “बने वर्धमान” प्रश्न मंच लिखित प्रतियोगिता का आयोजन भी किया गया, जिसमें उपस्थित लगभग सभी ने भाग लिया। आभार ज्ञापन तेयुप मंत्री संदीप मुथा ने किया। कार्यशाला का कुशल संचालन उपाध्यक्ष संतोष सेठिया ने किया।
समाचार सम्प्रेषक : स्वरूप चन्द दाँती