चेन्नई. किलपॉक में रंगनाथन एवेन्यू स्थित एससी शाह भवन में चातुर्मासार्थ विराजित आचार्य तीर्थ भद्रसूरीश्वर ने कहा मनुष्य जन्म अति दुर्लभ है । यह हम सैकड़ों बार सुन चुके हैं हृदय से स्वीकार करते हैं लेकिन यदि इस दुर्लभता को हम समझ गए होते तो आज जीवन और इसकी शैली कुछ और होती। इस संसार से बाहर निकलने का एक रास्ता है मनुष्य जन्म। मनुष्य जन्म में आकर हम आहार, काम वासना, भय और परिग्रह संज्ञा में फंस कर बाहर निकलना भूल गए।
आचार्य ने कहा असंख्य देवों और पशु पक्षियों की तुलना में मनुष्य की संख्या बहुत कम है। पुण्योदय से हमारा नम्बर मनुष्य भव में आया है।
उन्होंने कहा असंख्य उम्मीदवारों को परास्त कर हमें यह सीट मिली है । यह सामान्य बात नहीं है लेकिन इसका सदुपयोग नहीं करते मनुष्य जन्म में आयुष्य बहुत कम होती है। हमारे दिल में यह भावना होनी चाहिए कि हम इस भव में ज्यादा से ज्यादा आत्म कल्याण कर पुण्यार्जन करें।
आचार्य ने कहा देव सुख के पराधीन है। उनकी मजबूरी है कि वे सुख छोड़ नहीं सकते। इन्द्रदेव के पास सम्यक ज्ञान, समझ है लेकिन संयम, चारित्र, धर्म स्वीकार नहीं कर सकते क्योंकि वे सुख के पराधीन हैं। नारकी जीव दुख में फंसे हुए हैं, वे दुख के पराधीन होने से धर्म नहीं कर सकते। पशु पक्षी परिस्थिति के पराधीन व परवश हैं इसलिए उनके लिए भी धर्म करना संभव नहीं है।
उन्होंने कहा केवल मनुष्य गति ही सर्व प्रकार से स्वाधीन है । मनुष्य को जो करना है वह कर सकता है । धर्म, संयम, चारित्र को अपना सकता है। इतनी स्वाधीनता मिलने पर धर्म के प्रति रुचि नहीं है तो हमारे में मोह दशा भारी है इसलिए इतनी अनुकुलता होने पर भी धर्म के प्रति श्रद्धा भाव नहीं है।
उन्होंने कहा प्रभु की शक्ति और अनुग्रह से ही हर कार्य होता है न कि पुरुषार्थ से। परमात्मा के प्रति सम्मान भी उनकी कृपा से ही होता है। हमें प्रभु से याचना करनी है कि हमने अहंकार के जो वस्त्र पहने हैं वे निकाल दो। प्रभु भी तैयार है लेकिन इसके लिए एक ही शर्त है उनकी शरण में जाओ। आपके अहंकार का त्याग होने पर ही प्रभु का कृत्य शुरू होगा ।
आचार्य ने कहा जिस तरह खोजी का जब तक कार्य सिद्ध नहीं होता वह उसके पीछे पड़ा रहता है। उसी तरह शास्त्रों के अध्ययन में हमें खोजी बनना है। सोमवार को दोपहर 2.30 बजे चातुर्मासिक देेेव वन्दन, सायं 6.30 बजे चातुर्मासिक चौदस का प्रतिक्रमण होगा।