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संसार में कोई अपना नहीं है: जयतिलक मुनिजी

संसार में कोई अपना नहीं है: जयतिलक मुनिजी

यस यस जैन संघ नार्थ टाउन में चातुर्मासार्थ विराजित गुरुदेव जयतिलक मुनिजी ने प्रवचन में फरमाया कि नाता किससे है? संसारी से। स्वार्थ से हर कोई जुड़ता है। जब वक्त आयेगा तब मुहुँ दिखाने के लिए भी नहीं आयेंगे। कभी 2 माता-पिता, पत्नी पुत्र-पुत्री भी मौका मिलता है तो छोड़कर चले जाते है। पत्नी-पत्नी का साथ अंतिम तक हो। लेकिन स्वार्थ की पूर्ति न हो ।

व्यक्ति खारा लगने लग जाता है। ज्ञानी जन कहते है संसार में कोई अपना नहीं है, जिस दिन स्वार्थ की पूर्ति न हो तो कोई भी अच्छा नहीं लगता है। पिता के पास धन है तो पुत्री भी जाना आना लगाए रखती है। सीख देते हैं (सीख याने ज्ञान, शिक्षा) सीख देते है तो अच्छा लगता है। चार दिन पिता की सेवा करना है यह समझ रखे। बिना स्वार्थ से रखे। संकट में अपने भी पराये हो जाते है। दो बेटे है एक कमाता है एक नही कमाता है माँ किसको पूछती है धन कमाने वाले को। धर्म ध्यान करने वाले से भी ज्यादा धन कमाने वाले को पूछते है यह गलत है – कहते है कि धन कमाने वाले पाप करता है और धर्म ध्यान करता है तो आपकी पुण्यवाणी है और उसकी भी पुण्यवाणी है। धर्म ध्यान करने वाला सुख देता है उसे आगे धन कमाने वाला पौदुलिक सुख ही देने वाला है, पाप नहीं छूटता है।

धर्म ध्यान में छूट चाहिए लेकिन पाप कार्य में छुट रखते है क्या? ‘कोई किसी का नहीं है, संसार स्वार्थ का है दो बेटे में एक बेटे के पास जाता है तो माँ किसके पास रहती है धन वाले बेटे के पास रहती है। माँ के लिए कोई गरीब और क्या धन वाला वह तो व्यवहार रखती है। जब सभी को समान कब मानेगी, माँ, के लिए कोई भेद नहीं हो। जैसे मेरी दो, आंखें है। वैसे मेरे दो बेटे है। धर्म को जानने वाले के मन में कोई इच्छा नहीं कोई कामना नहीं। धर्म ध्यान करने वाला समभाव से सब बातों को सहन करता है आत्मयता रखता है सभी की सेवा करता है। बिना कामना का रहता है – दुख के समय साथ देने वाला हो । जीवों के प्रति करुणा की भावना रखने वाला हो। धर्म को समझने वाला निस्वार्थ रहता है। दोनो मित्र एक दूसरे के लिए अंदर से आत्मतया थी दोनों एक साथ में। दोनों मित्र एक साथ संकल्प लेते।

बेटा धर्म से जुडने के लिए धर्म स्थान में लेकर जाये ऐसा साथ मां देती है। माँ बच्चे को चार घंटा तक पढ़ाती है लेकिन धर्म ध्यान नहीं कराती है । धर्म एक ऐसी चीज है उससे जोड़ना पड़ता है सरल ह्दय में उपदेश टिकता है। धर्म में साथ देने वाला हो तो धर्म, ध्यान में बढ़ता है तो दिन मित्र एक दूसरे के साथ देने वाला होता है। कहते है मित्र से संसार में आ गया उसको कोढ हो गया उसका इलाज करने के लिए दुसरा मित्र आता है वह कहता है दुध में मैं तेरे शरीर के कीडे निकालकर दूसरे को पिलाये, कोई पियेगा क्या ? नहीं !

जरुरत पड़ने पर कोई साथ देता है क्या ऐसा कौन पियेगा। उसको कई तरह से समझाते है। लेकिन कोई नहीं पिता ऐसे कीडे वाला दूध किसी के उदर में जायेगा। मित्र इलाज करने लगा दूध की धारा जैसे शरीर पर गीरता कंचन वरणी काया बनती जाती है। मक्खन से पूछकर अच्छे वस्त्र पहनाते है अब उस कीडे वाले दूध को किसे पिलाने की कोशिश करते है पहला नम्बर पत्नी का आया । इसको कई तरह से समझाते है कि अगर पति का वियोग हो गया तो तेरी क्या इज्ज़त रहेगी लेकिन वो दूध पीने के लिए तैयार नहीं होती है। बाटा और वाणी के बदलने में समय नहीं लगता है

यदि आप मर भी गये तो मैं दूसरी शादी कर लूंगी ऐसी भावना नहीं आती है कि मैं क्यों दूसरी शादी करूं। सात जन्म मे साथ मिले ऐसी सोचने वाली भी दूसरी, तीसरी शादी करने के लिए तैयार हो जाती है।

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