जैन भवन रायपुरम में चातुर्मासार्थ विराजित पुज्य जयतिलक जी मरासा ने प्रवचन में बताया कि संसारी जीवों के लिए गृहस्थ धर्म में 12 व्रतों का निरुपण किया ! ताकि धर्म से वंचित न रहे और कर्तव्यों का भी पालन कर सके। अणुव्रत भी मुक्ति मार्ग में सहायक है। अनेक पापों से बचा कर अनासक्त बनाते हैं व्रत। मर्यादित आचरण होता है! और लगे पापो का प्रायचित कर शुद्धि कर लेता है। इन व्रत्तो से हित अहित का भान हो जाता है! जीवन निर्वाह के कार्यों में विवेक रखना है! निकचित कर्म टल जाते है! संसार सीमित होता है।
दसवां देशावगासिक व्रत का विवेचन: ‘9 व्रतो में आत्मा को संस्कारित कर लिया अब और आत्म शुद्धि के लिए और अधिक पुरुषार्थ के लिए दसवां व्रत को गृहस्थ अंगीकार करता है! इस व्रत में संसार के पूरे पापों का त्याग भी कर सकता है और संसारी प्रवृत्ति करते हुए भी इसका पालन कर सकते है! इसकी आराधना आप चाहों तो आजीवन का भी ले सकते है और चाहे तो एक दिन का भी कर सकते है। 14 नियम की मर्यादा करते हुए संसारी कार्य करते हुए भी इस व्रत की आराधना कर सकते है।
आसक्ति को घटाता है। भोग साधनो को सीमित करता है! समभाव स्वतः ही आत्मसात हो जाता है! 14 नियम में पहला नियम में 26 बोलों के परिमाण मे से और सिमीत कर प्रतिदिन का नीयम लिया जाता है! सचित जो जीव सहित है। एक प्राण के घात से जीव अचित नहीं होता वह सचित है। जिसमें जितने प्राण है उतना घात हो तो वह अचित है।
मिश्र भी सचित की श्रेणी में आता है। धोवन पानी 48 मिनट में अचित बनता हैं! गरम पानी में तीन उबाल आने पर ही अचेत होता है। काल मर्यादा-चातुर्मास काल में 3 प्रहर तक अचित रहता है। सर्दी के मौसम में चार प्रहर और गर्मी में 5 प्रहर तक अचित रहता है फिर से सचित होता है! 21 प्रकार के धोवन का नाम आगमों में उल्लेख है! और जिससे वर्ग गंध रस बदल जाता है वह धोवण है। गरम जल को प्रासुक से ऐषणिय कहा जाता है। धोने से जो बनाता है वह धोवन है। सिर्फ राख डाल कर बनावो तो वह धोवन नहीं है! छानने के बाद धोवन बनाना उसे छान कर वापरे !
मंत्री नरेंद्र मरलेचा ने बताया कि श्री यस. यस. जैन ट्रस्ट, रायपुरम द्वारा पुज्य जयतिलक जी म सा का महा-मांगलिक का आयोजन जैन भवन, रायपुरम में दिनांक 26-10-22 बुधवार कार्तिक सुदि 1 को सुबह 8 बजे होगा।