माधावरम् स्थित जैन तेरापंथ नगर के महाश्रमण समवसरण में ठाणं सूत्र के छठे स्थान के छयांलीसवें सूत्र का विवेचन करते हुए आचार्य श्री महाश्रमण ने कहा कि छह प्रकार के अप्रमाद की प्रतिलेखना प्रज्ञप्त की हैं| प्रतिलेखन एक ऐसी चीज है, जो जो स्वाध्याय में बाधक हो सकती हैं, रीपु (शत्रु) हो सकती हैं| प्रश्न उठता हैं, तो क्या करे? उपाय है, उपकरणों का अल्पीकरण करें, तो अपने आप प्रतिलेखन कम हो जायेगा| साधु को अल्पोपधि होना चाहिए| अल्पीकरण से प्रतिक्रमण कम होगा और अप्रमाद में रहने से, दोष लगने की सम्भावना कम रहेंगी| प्रतिलेखन और प्रर्माजन साधुचर्या के अभिन्न अंग हैं| जानबूझ कर प्रतिलेखन न छोड़े, छुट जाये तो आलोयणा ले, प्रायश्चित ले|
बारहव्रती श्रावक के लिए पक्खी का प्रतिक्रमण अावश्यक
आचार्य श्री ने प्रतिलेखन को जीवन के साथ जोड़ने की प्रेरणा देते हुए कहा कि सम्पूर्ण जीवन का भी प्रतिलेखन करना चाहिए, ध्यान देना चाहिए| मैं साधु – साध्वी या समणी हूँ, मेरा जीवन क्रम कैसा है, साधना कैसी चल रही हैं, प्रतिक्रमण कैसा चल रहा हैं, इस पर अवश्य ध्यान दें| श्रावक प्रतिक्रमण भी बहुत बढ़िया हैं| बारहव्रती श्रावक है, तो पक्खी का प्रतिक्रमण अवश्य करें| प्रतिक्रमण में लीनता रहे, तो लाभ मिलने की संभावना रहती हैं| जैसे स्नान से शरीर को साफ करते हैं, तो हम ज्ञान, दर्शन, चारित्र रूपी शरीर की भी विशुद्धि करने का प्रयास करें| साधु – साध्वी, समणी या श्रावकत्व के जीवन में साधना कैसी चल रहा हैं और क्या उत्थान हुआ, स्वयं से स्वयं का निरिक्षण हो| साधु जीवन में संयम की चादर उजली, निर्मल, अमल हो, उज्जवलता, धवलता बनी रहे| आराधना अच्छी हो तो, आगे भी अच्छा रह सकता हैं|
पाई-पाई का देना होगा हिसाब
आचार्य श्री ने चतुर्विध धर्मसंघ को बोध पाठ देते हुए कहा कि अयथार्थ बात कर, दोषों को छिपाने का प्रयास किया, तो आगे दादी या नानी का घर नहीं, पाई-पाई का हिसाब देना होगा| दूसरों से भले छुपालें, खुद से नहीं छुपा सकते| कार्मण शरीर का हिसाब – किताब साथ है, वहां दोषों को इकट्ठा किया और उस पर छल-कपट की चादर बिछा दी, तो कितना नीचे गिरेगा, पता नहीं| दोषों के गड्ढे को प्रायश्चित से भरने का प्रयास करें, तो मार्ग अच्छा होगा| देहावसान से पहले दोषों का शुद्धिकरण हो जाए, तो उपर जाकर स्थान अच्छा मिल सकता हैं| जीवन में चारित्र का पालन अच्छा, तो ऊंचा स्थान और धब्बे लगा दिये, तो नीचा स्थान मिलेगा| हमारी आत्मा संसार परिभ्रमण को कितना कम कर पायेगी, इसके लिए साधु – साध्वी, समणी या श्रावक, अपने-अपने नियमों के प्रति सम्यक् तया से जागरूक रह कर पालन करें, यह कमनीय हैं|
साध्वी श्री वसुधाश्री की स्मृति सभा
जयपुर में 14 नवम्बर को मध्य रात्रि में देवलोक हुई साध्वी वसुधाश्री जी की स्मृति सभा में आचार्य श्री ने कहा कि उधना, सूरत के भलावत परिवार में जन्मी, ने वि. स. 2058 को आचार्य श्री महाप्रज्ञजी के कर कमलों से दीक्षा स्वीकार की| पाली चातुर्मास में अचानक अस्वस्थता के कारण उपचार के लिए जयपुर स्वास्थ्य लाभ हेतु भेजा गया। साध्वी उर्मिलाकुमारी आदि साध्वियां भी पहुंच गई, पर स्वस्थ्य नहीं हो सकी और कार्तिक शुक्ला सप्तमी को रात्रि 11.25 बजे पर जयपुर में देवलोक गमन हो गया। उनके प्रति मध्यस्थ भाव से मंगल भावना है। खास बात है कि शासन से ही विदा हुई। सेवा एक ऐसा तत्व है, जो हम सभी के काम का है| हमारे मन में सेवा की भावना रहे, जहां जो औचित्य हो, सेवा में योगदान दे, यह प्रयास रहे। साध्वी उर्मिलाजी को सेवा का मौका मिला, साध्वी रायकुमारीजी को भी बीदासर से जयपुर भेजा गया, वो भी उनके जिम्मे है , वेदनीय कर्म है, समता में रहे।
साध्वी प्रमुखश्री कनकप्रभाजी ने साध्वी वसुधाश्री जी के बारे में बताया कि इनकी युवावस्था में ही जीवन यात्रा पूरी हो गई, वो एक सेवाभावी साध्वी थी। संभवत: तीन या चार चाकरी कर चुकी थी| अचानक अस्वस्थ हुए और चली गई। संयम जीवन की यात्रा सफल की, उनकी विशेषताएँ अन्य साध्वियों में भी आये। साध्वी ज्योतिप्रभा और वेभवप्रभा की नातिली थी। साध्वी ज्योतिप्रभा ने भी अपनी भावांजली दी। आचार्य प्रवर ने उनकी स्मृति में चार लोगस्स का ध्यान करवाया। साध्वी प्रमुखाश्री ने कालुयशोविलास का सुंदर वाचन करते हुए सरदारशहर चातुर्मास की दो विशिष्ठ घटनाओं का विवेचन किया।
प्रवास व्यवस्था समिति में आवास विभागाध्यक्ष श्री पुखराज बडोला , उपाध्यक्ष भवरलाल मरलेचा व सहयोगी आंनद समदडिया ने अपने भावों की अभिव्यक्ति दी। कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि श्री दिनेशकुमार ने करते हुए कहा कि मोक्ष पाने के लिए गुरु – प्रासाद के अभिमुख रहना चाहिए|
17वॉ प्रेक्षा इन्टरनैशनल शिविर
परम् पूज्य आचार्य श्री महाश्रमण जी सान्निध्य में रविवार से चल रहे 17वें प्रेक्षा इन्टरनैशनल अष्टदिवसीय शिविर के आज छठे दिन आचार्य श्री ने प्रेक्षाध्यान साधना पद्धति के बारे में बताते हुए प्रायोगिक प्रयोग करवाया| मुनि श्री कुमारश्रमण के निर्देशन में इस शिविर में रूस, स्वीडन, यूक्रेन, सिंगापुर, फांस इत्यादि विदेश से 73 साधक, संभागी बने हुए हैं|
✍ प्रचार प्रसार विभाग
आचार्य श्री महाश्रमण चातुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति, चेन्नई
विभागाध्यक्ष : प्रचार – प्रसार
आचार्य श्री महाश्रमण चातुर्मास व्यवस्था समिति