चेन्नई. ताम्बरम जैन स्थानक में विराजित साध्वी धर्मलता एवं अन्य सहवर्तिनी साध्वीवृंद के सान्निध्य में रूपेंद्रमुनि के पुण्य स्मरण दिवस तप, त्याग के साथ गुणानुवाद दिवस के रूप में मनाया गया। इस मौके पर साध्वी धर्मलता ने कहा वे मन से सरल थे। उनके वचन में मधुरता, काया में विनम्रता, विचार में उदारता, आत्मा में मुमुक्षुता का गुण था। अपने 52 वर्ष के दीक्षा पर्याय में सूर्य संत जिनशासन की महती प्रभावना करते हुए जगत से विदा हुए।
आज के युग में इन्सान को चाय, खाखरे और वस्त्र सभी कडक़ चाहिए लेकिन गुरु नरम चाहिए। रूपेंद्रमुनि संयम से कडक़ व स्वभाव से नरम थे। अंदर में रहकर सबके कार्य कर देना उनकी विशेषता थी। यही कारण है कि मृत्य के बाद उनका स्मरण श्रद्धा के साथ किया जाता है। जगत में पूज्य तो बहुत होते हैं लेकिन पूजनीय कोई-कोई ही होते हैं। साध्वी ने कहा जन्म वटवृक्ष की तरह होता है लेकिन उनका जन्म वटवृक्ष की तरह लहलहा उठा।
साध्वी ने कहा भगवान अरिष्टनेमि ने राजुल का त्याग कर संयम अंगीकृत किया जबकि रथनेमि संयम में रहते हुए भी विचलित हो गए। उल्लू को जैसे दिन में और कौवे को रात को दिखाई नहीं देता, वैसे ही कामांध व्यक्ति को दिन व रात दोनों में ही दिखाई नहीं देता। नारी शक्ति राजमती ने भटके हुए रथनेमि को संयम में स्थिर किया।