चेन्नई. ताम्बरम स्थित जैन स्थानक में विरोजित साध्वी धर्मलता ने प्रवचन में कहा कि संत का जीवन दीपक की लौ के समान है जो स्वयं मिटकर जगत को प्रकाश बांटती है। संतों के सान्निध्य में पहुंचने वाला अपनी ज्ञान की झोली अवश्य भर लेता है। चंदन की तरह सभी को जिनशासन की महक प्रदान करने वाले संत ही होते हैं।
संत और स्वार्थ दो विपरीत दिशाएं हैं। स्वार्थ का त्याग करना एक कठिन तपस्या है पर कठिन तपस्या में तपने वाला ही संत होता है। संत स्वार्थ से ऊपर होता है।
उन्होंने कहा, सुख-दुख, लाभ-अलाभ, जय-पराजय में समभाव रखना ही संत की समता है। संसार में तीन प्रकार के व्यक्ति होते हैं – स्वार्थी, आत्मार्थी और परमार्थी। स्वार्थी गधे को भी बाप बना लेते हैं तो आत्मार्थी स्वयं की आत्मा का चिंतन करता है जबकि परमार्थी स्व एवं पर के आत्मोत्थान का मार्ग प्रशस्त करता है।