चेन्नई. एमकेबी नगर जैन स्थानक में विराजित साध्वी धर्मप्रभा ने कहा संतों का वैराग्य ऐसा पक्का होता है कि जीवन में आने वाली बड़ी बाधाओं व विपदाओं से भी वे नहीं घबराते और न ही अपने पथ को छोड़ते हैं।
एक महापुरुष का जीवन व आचरण उस नारियल की तरह होता है जो ऊपर से कडक़ लेकिन अंदर से कोमल, मधुर व गुणकारी होता है। ऐसे ही सच्चा संत ऊपर से कडक़ दिखता है लेकिन जब किसी जीव को दुखी देखते हैं तो वे द्रवित हो उठते हैं। सरोवर, वृक्ष, संत और मेघ ये चारों सदैव परोपकार के लिए ही जीते हैं।
संत, बदली और नदी इन तीनों की चाल भुजंग जैसी होती है ये जहां भी जाते हैं वहां सबको निहाल कर देते हैं। संतों का मात्र दर्शन करने से ही पुण्यवानी का बंध होता है। संतों को तीर्थ से भी बढक़र बताया गया है क्योंकि तीर्थस्थल पर जाने से फल मिलता है और संतों के मात्र दर्शन से ही आत्मकल्याण हो जाता है।
साध्वी स्नेहप्रभा ने कहा सांसारिक प्राणियों का पूरा जीवन केवल दो बातें सोचते-सोचते ही व्यतीत हो जाता है। एक तो वे सदैव यही सोचते हैं यह मेरे पास है और यह मुझे प्राप्त करना है। दूसरे वह यह सोचता है कि यह काम तो मैंने कर लिया और यह काम अभी करना बाकी है।
लेकिन वह यह नहीं सोचता कि मानव की उम्र चाहे सौ साल हो या हजार साल, उसके काम कभी पूरे नहीं होते। बस वह ऐसी ही व्यर्थ की कल्पना और संकल्पों में पूरा जीवन व्यतीत कर देता है। सज्जनराज सुराणा ने बताया कि साध्वीवृंद के सान्निध्य में दस अगस्त को आचार्य आनंदऋषि व उपाध्याय केवलमुनि की जन्म जयंती मनाई जाएगी।