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ज्ञान वाणी

शिक्षा प्राप्ति के लिए ग्राहक बुद्धि और अभ्यास की आवश्यकता: महातपस्वी महाश्रमण

शिक्षा प्राप्ति के लिए ग्राहक बुद्धि और अभ्यास की आवश्यकता: महातपस्वी महाश्रमण

बंगारपेट, कोलार (कर्नाटक): कर्नाटक की धरती पर पहली बार उदियमान तेरापंथ के ग्यारहवें महासूर्य आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पूरे कर्नाटक को प्रकाशित कर दिया है। आध्यात्मिकता व मानवता की ज्योति से कर्नाटक का जन-जन आलोकित होने लगा है। सद्भावना, नैतिकता व नशामुक्ति का संदेश देते हुए आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी अहिंसा यात्रा के साथ कर्नाटक की धरती को पावन बनाने के लिए गतिमान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने रविवार को प्रातः एच.जे.आर. स्वर्ण महल से मंगल प्रस्थान किया।

कर्नाटक की धरती पर गतिमान आचार्यश्री के कदम धीरे-धीरे बेंगलुरु की ओर गतिमान हैं। बेंगलुरु में ही वर्ष 2019 का चतुर्मास होना है। मार्ग के दोनों किनारे छाई हुई हरियाली मार्ग को दर्शनीय बना रही थी। इसी हरियाली और वृक्षों की अधिकता के कारण कर्नाटक प्रवेश के बाद से तापमान में कमी देखने को मिल रहा है। आचार्यश्री लगभग दस किलोमीटर का विहार कर बंगारपेट में स्थित द जैन इंटरनेशनल स्कूल में पधारे। स्कूल से प्रबन्धन से जुड़े लोगों ने आचार्यश्री का भावभीना स्वागत किया। 

स्कूल परिसर में बने हाॅल में समुपस्थित श्रद्धालुओं को आचार्यश्री ने अपनी मंगलवाणी द्वारा पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि आदमी के जीवन में शिक्षा का बहुत महत्त्व होता है। शिक्षा प्राप्ति के लिए ग्राहक बुद्धि का होना बहुत आवश्यक होता है। इसके साथ परिश्रम और अभ्यास भी हो तो ज्ञानार्जन के क्षेत्र में अच्छा विकास किया जा सकता है।

आदमी के पास ग्राहक बुद्धि हो और वह परिश्रमी न हो, पढ़ लेने के बाद उसका अभ्यास न करे तो वह भला ज्ञान के क्षेत्र में कितना विकास कर सकता है। कोई व्यक्ति परिश्रमी भले हो, अभ्यास कर ले पर उसके पास ग्राहक बुद्धि न हो तो वह भी ज्ञान के क्षेत्र में उतना विकास नहीं कर सकता। इसलिए ज्ञानार्जन के क्षेत्र में ग्राहक बुद्धि जो ज्ञान ग्रहण करने के लिए हमेशा तत्पर रहे और अभ्यास जिसके माध्यम से ज्ञान और पुष्ट बनाया जा सकता है। बुद्धि का विकास ज्ञानावरणीय कर्म क्षयोपशम से होता है।

इसलिए किसी में ज्यादा ग्राहक बुद्धि होती है तो किसी में कम बुद्धि होती है। बुद्धि कभी अशुद्ध भी हो सकती है। गलत विचार से बुद्धि खराब भी हो सकती है। बुद्धि के द्वारा ज्ञानार्जन किया जा सकता है, किसी समस्या का समाधान किया जा सकता है तो खराब बुद्धि के द्वारा किसी का अहित भी किया जा सकता है। कोई समस्या पैदा भी की जा सकती है। 

शुद्ध बुद्धि संपदा प्रदान करने वाली होती है, विपत्तियों को रोक सकती है और बुद्धि के भविष्य का ज्ञान हो जाए तो भविष्य की घटना आदि से भी बचा जा सकता है। संस्कारों से युक्त शुद्ध बुद्धि कल्याणकारी हो सकती है। अहंकार, प्रमाद, बीमारी व आलस्य ज्ञान के बाधक हैं। आदमी को इससे बचते हुए ज्ञानार्जन के क्षेत्र में आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए।

आचार्यश्री ने जैन स्कूल में पदार्पण के संदर्भ में स्कूल और बच्चों को मंगल आशीर्वाद प्रदान किया। स्कूल के विद्यार्थियों द्वारा नमस्कार महामंत्र व गणपति वंदना के माध्यम से आचार्यश्री की अभ्यर्थना की गई। बालिका जिया शर्मा ने आचार्यश्री का अंग्रेजी में जीवन परिचय प्रस्तुत किया। उस जीवन परिचय को एक बलिका ने कन्नड़ भाषा में प्रस्तुत की।

स्कूल के ट्रस्टी स्नाथकवासी संप्रदाय के श्री महेन्द्र मुणोत ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी। नवनीत कुकुल व बालिका तन्वी कुकुल ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। बंगारपेट महिला मंडल व बांठिया परिवार की बेटियों ने गीत के माध्यम से श्रीचरणों की अभ्यर्थना की। 

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