चेन्नई. सिर्फ शास्त्र वाचन से किसी का उद्धार नहीं होता है। बिना तप किए कर्मों का सर्व नाश नहीं होता है।
अयनावरम स्थित जैन दादावाड़ी में विराजित साध्वी पद्मकीर्ति ने कहा श्रीपाल और मैना सुदंरी ने संकट से न घबराकर नवकार मंत्र का सहारा लेकर हर सांस में उनका जप कर अपने कष्टों को दूर किया। साध्वी कुमुदलता ने कहा कि व्याकरण से किसी की भूख नहीं मिटती। काव्य रस से किसी की प्यास नहीं बुझती।
तप का महत्व बताते हुए उन्होंने कहा कि तप धर्म का उत्कृष्ट अंग है। शास्त्र कहते है कि अहिंसा, संयम और तप रूप धर्म उत्कृष्ट मंगल है। जीवन में तेजस मुख्य तत्व है। जिसकी उपलब्धि का मुख्य साधन तप है। वैदिक धर्म में भी कहा गया है कि तप से ही तेजस्वी मनुष्य लोक में समृद्धि पाता है।
तप जीवन का, धर्म का, संस्कृति का और समग्र विश्व का मूलभूत प्राण है। यही कारण है कि सभी धर्मों में तप का विधान किसी न किसी रूप में मिलता है। तप का अर्थ है तपना। जो आज्ञा रूपी स्वर्ग को तपाकर कर्म रूपी मंत्र से रहित बना शुद्ध कुंदन बना दे उसे तप कहते हैं। स्वेच्छा से समभाव पूर्वक विवेक से इच्छाओं को विषयों से रोकना ही तप है।
भोजन के प्रति हो रही आसक्ति को हटाना भी तप है। शरद पूर्णिमा के बारे में उन्होंने कहा कि वैदिक परंपरा में एक चेद्रमा व्रत होता है। इसमें पहले दिन एक ग्रास, दूसरे दिन दो ग्रास और इसी तरह चंद्र का शुक्ल पक्ष में बढ़ती तिथि है, एक ग्रास बढ़ जाता है। कृष्ण पक्ष में एक ग्रास हटता जाता है। इस अवसर पर अशोक तेलड़ा 31 उपवास की अनुमोदना की।