विल्लुपुरम. यहां गिंगी स्थित चाणक्य मेट्रिकुलेशन हायर सेकण्डरी स्कूल में विराजित आचार्य महाश्रमण ने कहा एक प्रश्न हो सकता है कि आदमी इस शरीर को धारण क्यों करे? आदमी इस शरीर को पोषण क्यों दे? आदमी कितनी मेहनत और कितने कार्यों को करने के उपरान्त भोजन-पानी की व्यवस्था करता है और खाने के माध्यम से अपने शरीर को पोषण देता रहता है।
आदमी कमाई करता है और अपने शरीर को टिकाए रखने का प्रयास करता रहता है। शास्त्रकार ने एक सुन्दर समाधान दिया कि इस मानव शरीर के माध्यम से आदमी कर्मो की निर्जरा कर सकता है और मोक्ष की प्राप्ति भी हो सकती है। इसलिए आदमी को इस शरीर को टिकाए रखने के लिए शरीर को आहार दिया जाता है, पोषित किया जाता है। जिस प्रकार किसी कार्य को कराने के लिए उसका किराया दिया जाता है, इसी प्रकार कर्म निर्जरा के लिए भी आदमी को पोषण के रूप में किराया दिया जाता है।
भोजन न मिले तो शरीर भजन में भी बाधा डाल सकता है। भूखे से पेट भला कितनी भक्ति हो सकती है। शरीर को भोजन देने की आवश्यकता होती है। इसलिए आदमी को आहार में भी संयम रखने का प्रयास करना चाहिए।
उन्होंने कहा कि आदमी को अपने आहार-पानी में संयम रखने का प्रयास करना चाहिए। आदमी के सामने मनोज्ञ पदार्थ आ जाए तो आदमी ठूंस-ठूंस कर खा लेता है। आदमी को ऐसा करने से बचने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को खाने के समय उनोदरी कर लेने का प्रयास करना चाहिए। भोजन में उनोदरी काफी अच्छा होता है।
आदमी को आहार में, बोलने में, सोने में, उपकरण आदि रखने में अल्पता रखने का प्रयास करना चाहिए। ऐसे आदमी को देवता भी प्रणाम करते हैं। आदमी को जीभ के लिए नहीं, शरीर के लिए भोजन करना चाहिए। जीभ को नियंत्रण में रखने का प्रयास करना चाहिए। परिश्रम से कमाए हुए पैसे से शुद्ध भोजन हो और आदमी विवेकपूर्ण भोजन करे तो और अच्छा हो सकता है।