रायपुरम जैन भवन में विराजित पुज्य जयतिलक जी मरासा ने प्रवचन में बताया कि साधु साध्वी-संसार त्याग कर, श्रावक श्राविका- संसार में रहकर धर्म आराधन कर सके! संसार की मुक्ति की लालसा जागो, व्रत पालन की मजबूती पाप त्याग की उत्कृष्ट भावना जगे! व्रत तो सुरक्षा कवच है जो पापरुपी कर्मो से बचाते है! जैसे सैनिकों के सुरक्षा कवच होता है आश्रव निरोध होकर संवर का आगमन होता है।
नियमों के पालन से जुर्माना से बचा जा सकता है। यदि जानबूझ कर पाप करे तो गुरु समक्ष निदेश गर्हण कर प्रायश्चित ले लो! दसवें व्रत में भी आगार है! 14 नियम के पालन से व्यक्ति पाप कर्म से बचता है, सुरक्षा भी है! भगवान कहते हैं व्रत पालन करने से इतने मजबूत हो जाओगे की फिर व्रत में दोष नहीं लगेगे।
व्रत भवभ्रमण का रोक कर ऊँची गति में ले जाने वाले हैं। व्रत जीवन को निर्भय बनाते हैं। व्रत से जीवन मर्यादित बनता है! देश की सीमा सुरक्षा के लिए तो खर्च करना पड़ता है किंतु व्रत के सीमा सुरक्षा में खर्च नहीं होता है! यह शरीर तो नश्वर है आत्मा अजर अमर है यदि मर्यादा नहीं करो तो आत्मा को दुःख भोगना पड़ता है। दसवां व्रत के पाँच अतिचार है!
मर्यादित क्षेत्र के बाहर की वस्तु न ले जाना, न भेजना।
शब्द आदि करके मर्यादित क्षेत्र के बाहर वस्तु मंगवाना, भेजना। शारीरिक चेष्टाओ द्वारा या रूप दिखाकर, कार्य करवाना। पत्थर आदि फेंक कर बाहर रही वस्तु को भिजवाना, कार्य आदि करवाना।
श्रीमती मधुजी बोहरा ने इन लोगों ने चौबीसी का मास खामन करवाया: अरुणा कोठारी, ममता कोठारी, N. पिंकी कांठारी,सुशीला भुबकिया,V. सुनिता कोठारी, सुनिता कोठारी M, नमिता संचेती, सपना कोठारी, D.सुनिता कोठारी, D. पिंकी कोठारी, संगीता संचेती, कविता बंब, राजमती कोठारी।