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ज्ञान वाणी

व्याधि-उपाधि से मुक्त होना ही समाधि: मुनि संयमरत्न विजय

व्याधि-उपाधि से मुक्त होना ही समाधि: मुनि संयमरत्न विजय

 

चेन्नई. साहुकारपेट स्थित राजेन्द्र भवन में विराजित मुनि संयमरत्न विजय व भुवनरत्न विजय के सान्निध्य में शिवगंज के नरेन्द्र कुमार केशरीमल साकरिया परिवार द्वारा ‘आनंदघन की आत्मानुभूति का संगीतमय आयोजन हुआ। मुनि ने योगीराज आनंदघन के आध्यात्मिक पदों के गूढ़ रहस्य पर प्रकाश डालते हुए कहा सुसंस्कारों का न्यास करने वाला और कुसंस्कारों का नाश करने वाला संन्यासी होता है। आत्मबुद्धि जाग्रत होते ही जीव अपने देह रूपी देवालय में परमात्म स्वरूप आत्मा को प्रतिष्ठित कर मन को स्थिर करने का प्रयास करता है। शरीर की 72000 नाडिय़ों में 14 नाडिय़ां मुख्य हैं इनमें भी इडा, पिंगला और सुषुम्ना नाड़ी प्रधान होती है। इडा-पिंगला नाड़ी से चलने वाला श्वास विषम और सुषुम्ना में चलने वाला श्वास सम होता है। सम श्वास से प्राण सम बनते हैं। प्राण सम चलते हैं तो शरीर स्वस्थ व निरोगी बनता है, मन सुमन बनता है, बुद्धि सद्बुद्धि बनती है, चित्त स्थिर होता है। मन ही मोक्ष व बंध का कारण है। कषाय-विषयों का संग करने से आत्मा बंध जाती है और विषय-कषायों का संग छोडऩे से वही आत्मा मुक्त हो जाती है। अष्टांग योग से नाभि प्रदेश के आठ रुचक प्रदेश स्थित चेतना जागृत होती है। हिंसा, झूठ, चोरी, परदारा गमन, पर वस्तुओं में मूच्र्छा रूप परिग्रह के त्याग को यम-व्रत कहते हैं। यम का नियमन करने के लिए जिन कठोर नियमों का पालन किया जाता है, वे नियम कहलाते हैं। जिस तरह राजशासन चलाने के लिए राज्य आसन (राजगादी) की स्थिरता आवश्यक है, वैसै ही धर्म शासन, आत्मशासन करने के लिए आसन की आवश्यकता है। योगी को योग साधना में परमात्म प्रेम के आहार की आवश्यकता रहती है। शरीर को स्वस्थ रखने के लिए जैसे शुद्ध सात्विक आहार की आवश्यकता रहती है, वैसे ही मन की निरोगिता के लिए मन को निर्दंभ, निष्कपट, निश्छल, निर्मल बनाना प्रत्याहार कहलाता है। किसी एक ही वस्तु विशेष पर मन को केन्द्रित व स्थिर करना धारणा कहलाती है। विचारों से रहित होना, ध्येय में निमग्न होना ही ध्यान है। आधि-व्याधि-उपाधि से मुक्त होकर बुद्धि को आत्मा के साथ एकरूप बना देना ही समाधि है। म्हांरो बालुड़ो संन्यासी, नाव में नदियां डूबी जाय, भंवरा किन गुण भयो रे उदासी, मनु प्यारा आदि पदों का गायन चेन्नई की श्वेता भरत गांधी ने किया, उनका सम्मान लाभार्थी परिवार द्वारा किया गया।

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