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वीणा की तरह वाणी में भी संतुलन जरूरी: जयधुरंधर मुनि

वीणा की तरह वाणी में भी संतुलन जरूरी: जयधुरंधर मुनि

चेन्नई. वेपेरी स्थित जय वाटिका मरलेचा गार्डन मेंं विराजित जयधुरंधर मुनि ने कहा वर्तमान युग में झूठ और लूट का प्रचलन कुछ ज्यादा ही बढ़ता जा रहा है व्यक्ति झूठ बोलकर दूसरों की अमानत लूटने का प्रयास करता है लेकिन ऐसा करना न्याय एवं नीति के विरुद्ध है। दूसरों का हक छीनना अन्याय नहीं अत्याचार भी है।

विश्वासघाती को महापापी की श्रेणी दी जाती है। जिस झूठ के साथ हिंसा जुड़ी होती है ऐसा झूठ श्रावक को कभी नहीं बोलना चाहिए। झूठ बोलने वाले का कोई भी विश्वास नहीं करता। विश्वास की डोर पर टिके हुए रिश्ते झूठ बोलने के कारण टूट जाते हैं। आहार की तरह बात को भी पचाना जरूरी है। आजकल मर्मकारी बातें आग की तरह फैलती है।

एकांत में बातचीत कर रहे हैं दो व्यक्तियों की बात सुनकर असद कल्पना से मनगढ़ंत अर्थ निकालते हुए झूठा आरोप लगा दिया जाता है जिससे सामने वाले को बहुत कष्ट पहुंचता है।

पशु इसीलिए कष्ट पाता है क्योंकि वह बोल नहीं सकता और मनुष्य इसलिए कष्ट पाता है वह बोलते समय विवेक नहीं रखता। गरम पानी हाथ जलाने का काम करता है तो गर्म वाणी ह्रदय जलाता है। अत: सामने वालों को पीड़ा पहुंचे ऐसे कटु वचनों का प्रयोग नहीं करना चाहिए। वीणा की तरह वाणी में भी संतुलन होना जरूरी है।

जयपुन्दर मुनि ने कहा जो कर्म में शूर होता है वही कभी परिवर्तन आने पर धर्म में भी शूर बन सकता है। शूरवीर व्यक्ति कष्टों से घबराता नहीं है। संकट के समय पीछे हटना कायरता का लक्षण माना जाता है।

आचार्य जयमल ने विरोधियों के द्वारा कष्ट पहुंचाने पर भी उसका सामना करते हुए संघर्ष किया तभी वहां महापुरुष के श्रेणी में आए। मुनिवृंद के सानिध्य में १३ से १५ सितम्बर तक आचार्य जयमल का 312वां जन्मोत्सव मनाया जाएगा।

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