जैन विद्याश्रम में विद्यार्थीयों को विशेष विद्या प्रदान करते हुए अध्यात्म विद्या के गुरू श्री महाश्रमण ने कहा कि आर्हत् वांगमय में शास्त्रकार ने पांच ऐसे कारण बताये है, जिनके होने से आदमी शिक्षा को प्राप्त नहीं कर सकता| ज्ञान प्राप्ति के पांच बाधक तत्वों में पहला तत्व है – अंहकार|
विद्यार्थीयों के लिए अपेक्षित हैं, अंहकार न करे, विनय भाव रखे| विद्या का श्रृंगार है, विभूषण है, विनय| ज्ञान के क्षेत्र में घमण्ड न हो, नम्रता हो| जो यथार्थ है, ग्राह है, के प्रति विनम्रता का भाव हो| सच्ची और अच्छी बात, कही भी हो, सम्माननीय हैं| हीरा तो कीचड़ में पड़ा हो, तो भी व्यक्ति उठा लेता हैं| जो अभिवादनशील है, विनीत है, वृद्धों की सेवा करने में तत्पर रहते हैं, उनका आयुष्य लम्बा होता हैं, विद्या, यश और बल बढ़ता हैं|
आचार्य श्री कहा ज्ञान प्राप्ति में दुसरा बाधक हैं, गुस्सा| विद्यार्थी गुस्सा न करें, शांत भाव से विद्यार्जन करे| तीसरा, प्रमाद से बचे| नशीले पदार्थों के सेवन से प्रमाद आ सकता हैं| चौथी बात है, रोग| शरीर स्वस्थ हो, बिमारी से बचे| पांचवा कारण है, आलस्य| शरीर तो स्वस्थ है, पर आलस्य, मनुष्यों के शरीर में रहने वाला बड़ा शत्रु हैं|
बच्चे सच्चे, अच्छे तो भारत में स्वर्ग उतार सकते है, स्वर्ग
आचार्य श्री महाश्रमण ने *बाल दिवस* पर पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि आज भारत के पहले प्रधानमंत्री श्री जवाहरलाल नेहरू का जन्मदिन हैं| भारत के बच्चे सच्चे रहे, अच्छे रहे तो भारत में स्वर्ग उतार सकते हैं| बच्चे अच्छे होंगे, तो युवक व प्रौढ़ भी अच्छे नागरिक बन सकेंगे| एक बार आचार्य श्री तुलसी का जवाहरलाल नेहरू से उनके निवास पर मिलन हुआ, तब पंडितजी ने आचार्य श्री तुलसी से पुछा कि आपको क्या चाहिए? तो आचार्य श्री तुलसी ने कहा – पंडितजी हम लेने नहीं, देने आये हैं|
हमारे पास अणुव्रत का कार्यक्रम हैं, साधुओं की धवल सेना हैं| भारत अभी-अभी आजाद हुआ है, नैतिकता की जरूरत हैं, सेवा देने की प्रस्तुति करने आये हैं|
*परिश्रम के समान नहीं कोई बंधु*
आचार्य श्री ने आगे कहा कि *परिश्रम के समान कोई बंधु नहीं और उद्यम के समान कोई भाई नहीं| इनका आश्रय लेने वाला व्यक्ति दु:खी नहीं होता| ये जो ज्ञान लेने में पांच बाधक तत्व है, इनसे जो मुक्त रहता हैं, वह विशेष ज्ञान प्राप्त कर सकता है, आगे बढ़ सकता हैं| भौतिक, आर्थिक, शैक्षणिक विकास के साथ-साथ, नैतिक व आध्यात्मिक विकास भी आवश्यक हैं| भारत के बच्चों में नैतिकता व आध्यात्मिकता के भाव उभर आये तो, भारत अच्छा राष्ट्र बन सकता हैं|
*विद्यार्थी पढ़कर अच्छे ज्ञानवान, संस्कारवान बने*
आचार्य श्री ने आगे कहा कि आज जैन विद्याश्रम आये हैं। यहां जैन धर्म की जानकारी, भगवान महावीर के सिद्धांत, पर्युषण आदि की जानकारी भी विद्यार्थियों को दी जाती होगी। नशा मुक्ति का प्रयास हो। सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति से विद्यार्थियों का अच्छा विकास हो सकेगा। सभी बच्चों को तीनों आयामों के प्रत्याख्यान करवाये गये।
मुनि श्री अनेकांतकुमार जी ने त्रिआयामों को तमिल भाषा में बच्चों को समझाया। आचार्य श्री ने कहा कि संचालकों द्वारा विद्यार्थियों को अच्छे संस्कार मिलते रहे। जैन विद्याश्रम ज्ञान प्राप्ति का साधन है, विद्यालय में *विद्यार्थी पढ़कर अच्छे ज्ञानवान, संस्कारवान बने और अच्छे कल्याणकारी हो।* जैन विद्याश्रम विद्या के साथ अच्छे संस्कार देने में भी प्रगति करें, यह मंगल भावना है।
जैन विद्याश्रम में पधारने पर पुज्यवर के सन्निधि मे महाश्रमण विंग का उद्घाटन हुआ। दो विंग में से एक विंग का उद्घाटन श्रीमती सुरजी बाई नथमल डागा परिवार की ओर से मदनलाल डागा ने और दूसरी विंग का उद्घाटन श्रीमती मैनाबाई जुगराज डागा परिवार की ओर से गणपतराज डागा द्वारा किया गया। कार्यक्रम का प्रारंभ डागा परिवार की बहनों द्वारा मंगलाचरण से हुआ।
श्रीमती सुनीता डागा, डॉ सुष्मिता डागा व लक्ष्य डागा ने अपने भावों की अभिव्यक्ति दी। संस्थान के कोषाध्यक्ष श्री अमृतलाल डागा एवं महासभा के न्यासी श्री ज्ञानचंद आंचलिया ने भी अपने भावों की अभिव्यक्ति दी। जैन विद्याश्रम के संवाददाता (कॉरेसपॉंडेंट) किशनचन्द चोरडिया ने पुज्यवर का स्वागत करते हुए संस्थान की गतिविधियों की जानकारी दी एवं आचार्य श्री के प्रवचन का तमिल भाषा में सांराश रूप में प्रस्तुत किया|
विद्याश्रम में पधारने पर संस्थान के सभी शिक्षक व विधार्थों ने आचार्य श्री का अभिवादन, स्वागत किया|
मुनि श्री दिनेश कुमार ने कहा कि जैन विद्या से बड़ी कोई विद्या नहीं, वह सद् संस्कार देती हैं| विद्यार्थीयों में नशामुक्ति का संकल्प आ गया, तो उनका जीवन अच्छा हो सकता हैं| बच्चों में ज्ञान का प्रकाश हो, सदाचार का सुवास हो|
कार्यक्रम का कुशल संचालन पदमचन्द चौपड़ा ने किया| कार्यक्रम के पश्चात पुन: आचार्य प्रवर विहार कर माधावरम् स्थित जैन तेरापंथ नगर पधारे|
जैन तेरापंथ नगर स्थित महाश्रमण समवसरण में साध्वी प्रमुखाश्री कनकप्रभा ने कालू यशोविलास का सुन्दर वाचन करते हुए साधकों को साधना में संलग्न रहने की प्रेरणा दी|
*तेयुप द्वारा संचालित एटीडीसी, पूळळ पधारे पूज्य प्रवर*
इससे पूर्व प्रात:काल माधावरम् स्थित जैन तेरापंथ नगर से विहार कर आचार्य श्री महाश्रमणजी, तेरापंथ युवक परिषद के कार्यालय एवं अभातेयुप के तत्वावधान, तेयुप चेन्नई द्वारा संचालित, मानवसेवा को समर्पित आचार्य तुलसी डायग्नोस्टिक सेन्टर, पुळळ (रेड हिल्स) पधारे| तेयुप अध्यक्ष श्री भरत मरलेचा ने स्वागत भाषण प्रस्तुत करते हुए आचार्य प्रवर के पधारने पर कृतज्ञता ज्ञापित करते हुए गतिविधियां निवेदित की| इस अवसर पर आचार्य श्री ने प्रेरणा पाथेय प्रदान किया|
परमाराध्य आचार्य प्रवर ने एटीडीसी परिसर एवं संचालित गतिविधियों का अवलोकन कर मंगल पाठ सुनाया| इस अवसर पर चातुर्मास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष श्री धरमचन्द लूंकड़, अभातेयुप राष्ट्रीय सहमंत्री श्री रमेश डागा, एटीडीसी प्रभारी – संयोजक, तेयुप पदाधिकारी, युवा साथी और गणमान्य व्यक्तित्व उपस्थित थे| कार्यक्रम का संचालन मंत्री श्री मुकेश नवलखा ने किया|
*✍ मीडिया प्रभारी*
*तेरापंथ युवक परिषद्, चेन्नई*