चेन्नई. पट्टालम स्थित तेरापंथ जैन विद्यालय में आयोजित कार्यक्रम में मुनि ज्ञानेन्द्रकुमार ने कहा ज्ञान का विकास करते-करते ज्ञान होता है। फिर भी सभी में ज्ञान का विकास समान नहीं होता।
कुछ छात्रों को याद बहुत जल्दी हो जाता है, तो कुछ को देर से होता है। सबकी बुद्धि समान नहीं होती। अभ्यास करने से स्मरण शक्ति का विकास हो सकता है।
मुनि ने स्मरण शक्ति के विकास के लिए ज्ञान मुद्रा में ऊँ ह्रीं णमो उवज्झायाणं एवं भक्तामर स्तोत्र के छठे श्लोक का 27 बार जप करने के प्रयोग समझाए। विद्या की देवी सरस्वती है, उसे मंत्र आराधना से सिद्ध किया जा सकता है।
भारतीय शिक्षा पद्धति में जीवन विकास के साथ सभी बन्धनों से मुक्ति के लिए विद्या ग्रहण की जाती है। विद्या वही, जो बंधन से मुक्ति की ओर ले जाए।
मुनि रमेशकुमार ने कहा विद्या विनय देती है। विनय से ज्ञान की प्राप्ति होती है। विद्या विकास के साथ यदि केवल बुद्धि का ही विकास होगा तो तर्क बढ़ेगा।
बुद्धि कुएं का पानी है और विद्या विशाल समुद्र के समान। विद्यार्थियों में शिक्षा के साथ के साथ विनय, विवेक बढऩे से सर्वांगीण विकास हो सकता है।
मुनि सुबोधकुमार ने कहा ज्ञान सागर के समान अनंत है। हम सब उस सागर में एक बूंद के समान हैं, बिंदु से सिंधु बनने का माध्यम विद्यालय होता है। बच्चे उस विद्या के मंदिर में पढ़ते हैं।
महान व्यक्ति से श्रेष्ठ है अच्छा इंसान बनना और हर विद्यार्थी को यही लक्ष्य रखना चाहिए।
इससे पूर्व विद्यालय के विद्यार्थियों ने अणुव्रत गीत से प्रार्थना की। विद्यालय के मैनेजिंग ट्रस्टी भंवरलाल मरलेचा ने तेरापंथ जैन स्कूल का परिचय दिया।
प्रिंसिपल आशा दृष्टि ने आभार ज्ञापित किया। चेयरमैन छगनमल धोका, करस्पोंडेंट सूरजमल धोका, शिक्षिकाएं एवं समाज के गणमान्य लोग इस अवसर पर उपस्थित थे।