चेन्नई. विज्ञान ने शारीरिक सुख देकर आत्मज्ञान से वंचित कर दिया। मंगल ग्रह का द्वार खोलकर जीवन को अमंगल बना दिया। आदमी भटक गया। अपनी नियति, अपनी संस्कृति को भूल गया। पशु से बदतर हो गया। हिंसक बन गया।
कोंडीतोप स्थित सुंदेशा मूथा भवन में विराजित आचार्य पुष्पदंत सागर ने कहा कि विज्ञान ने क्या छीना? साइकिल ने पद विहार को छीन लिया। पहले आदमी पैदल चलता था शरीर स्वस्थ्य रहता था। खुद अपना सामान लेकर चलता था। स्कूटर ने साइकिल छीन ली। आदमी गति से भाग रहा है। किसी की आवाज भी नहीं सुनता। टैक्सी ने रिक्शा छीन लिया। गरीबों की रोजी रोटी छीन ली। ट्रैक्टर ने बैलों को छीन लिया। अब ट्रेक्टर खरीदकर कर्जदार बन गया।
रेल ने बस का सफर छीन लिया। एयर सर्विस ने रेलों का सफर कम कर दिया। आदमी अहंकार से भर गया। विज्ञान ने आदमी का समय तो बचाया पर समय का सदुपयोग नहीं सिखाया। मनोरंजन के साधन तो दिए पर मन विकृत कर दिया। आचरण के द्वार नहीं खोले। विज्ञान ने सुविधा तो दी पर आत्मसुरक्षा नहीं दी। साधन तो दिए पर आत्म शांति से दूर रखा।
विज्ञान ने पदार्थो के पदार्थ खड़े किए पर परमात्मा से दूर रखा। धर्म ने हमें सभी कुछ दिया। आत्मशांति के साथ साथ आत्म सुरक्षा दी। आत्म ज्ञान दिया, प्रेम मैत्री, प्राणी पर दया का द्वार खोला। आदमी प्रेमी नहीं प्रतिस्पर्धी बन गया। क्रिया भूलकर प्रतिक्रिया में उतर गया।