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ज्ञान वाणी

विजयादशमी पर पाये अपनी आत्मा पर विजय : आचार्य श्री महाश्रमण

विजयादशमी पर पाये अपनी आत्मा पर विजय : आचार्य श्री महाश्रमण

साधु मार्ग को बताया परम् सुख पाने का तीव्र गति का मार्ग

आज विजयादशमी का पर्व हैं, विजय प्राप्ति का दिन हैं| हम अपनी आत्मा पर विजय पाये| जो आत्मा को जीत लेता हैं, वह परम् विजयी होता हैं, उपरोक्त विचार माधावरम् स्थित जैन तेरापंथ नगर के महाश्रमण समवसरण में धर्मसभा को संबोधित करते हुए आचार्य श्री महाश्रमण ने कहें|

पटाखों से होता पर्यावरण प्रदूषित

आचार्य श्री ने आगे फरमाया कि भगवान महावीर के पिछले भव देखे, कितनी साधना की, तब महावीर के भव में कैवल्य प्राप्त हुआ| महावीर एक महान् धर्म प्रवर्तक एवं मार्गदर्शक थे| भगवान महावीर के निर्वाण दिवस को दीपावली पर्व के रूप में मनाते हैं| उस दिन फटाखें छोड़ते हैं, जिससे हिंसा होती हैं, पर्यावरण भी प्रदूषित होता हैं| उसमें संयम हो, फटाखें छोड़ने का प्रत्याख्यान करे| दीपावली का पर्व भगवान महावीर के जप अनुष्ठान से मनाएं|

ठाणं सूत्र के छठे स्थान के अठारहवें सूत्र में छ: प्रकार के असात (दु:ख) का विवेचन करते हुए आचार्य श्री महाश्रमण ने कहा कि संसार में सुख भी है और दुख भी हैं| जन्म दु:ख हैं, बुढ़ापा दु:ख हैं, रोग दु:ख हैं और मृत्यु भी दु:ख हैं| संसार में अहो कितना दु:ख हैं| जहां देखो प्राणी संकलिष्ट हैं, दु:खी हैं| हमारा एक लक्ष्य हो, सर्व दु:ख मुक्ति का|

सिद्ध होते सब दु:खों से मुक्त

आचार्य श्री ने आगे कहा कि सिद्ध सब दु:खों से मुक्त होते है, क्योंकि *सिद्धों के न शरीर हैं, न मन हैं और न वाणी हैं, वे तो केवल विशुद्ध आत्मा हैं| आदमी सर्व दु:ख मुक्ति के लिए आध्यात्म की साधना करें| निर्ग्रंथ प्रवचन वीतराग प्रभु का बताया हुआ धर्म हैं, इसके आचरण से सर्व दु:ख मुक्ति हो सकती हैं| संसार में जन्म के साथ मृत्यु जुड़ी हुई है|
आचार्य श्री ने आगे कहा कि स्वयं का निग्रह करना, संयम करना ही दु:ख मुक्ति हैं| साधु बनना भी दु:ख मुक्ति का मार्ग हैं| साधु नहीं बन सके तो, छोटे छोटे नियम अपना कर अणुव्रती बने| यह मंद गति का लम्बा मार्ग हैं, साधुपन तीव्र गति का मार्ग हैं| अपनी अपनी चलने की क्षमता हैं, पर मार्ग एक ही हैं| पथ एक हैं, रथ एक हैं, पर रथ की गति का फर्क हैं| संसार समुन्द्र का रास्ता पार करना है, जितना तीव्र गति से पार करेंगे, वह मार्ग शीघ्र मिलेगा|

साध्वी प्रमुखाश्री कनकप्रभा ने कालू यशोविलास का सुन्दर वाचन करते हुए भिवानी चातुर्मास के प्रसंगों का विवेचन किया| बंगलूर से समागत श्री कांतीलाल पिपाड़ा ने अपने भावों की अभिव्यक्ति दी| कई क्षेत्रों के स्कूली बच्चें पहुंचे, गुरूदेव से पावन पाथेय प्राप्त किया| कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि श्री दिनेश कुमार ने किया|

*✍ प्रचार प्रसार विभाग*
*आचार्य श्री महाश्रमण चातुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति, चेन्नई*

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