चेन्नई. ताम्बरम जैन स्थानक में विराजित साध्वी धर्मलता ने कहा अरिहंत होने की दशा में इंसान का पहला कदम होता है अपनी ही खोज। अपनी आंखों में अपने ही अस्तित्व को निहारना। मैं कौन हूं ये चिंतन करना। राग को घटाने के लिए अनित्य भावना का माध्यम है। द्वेष को कम करने के लिए मैत्री करुणा, प्रमोद भाव है। राग में स्वार्थ है अनुकंपा में नहीं।
क्रोध से द्वेष की उत्पत्ति होती है और माया से राग पैदा होता है। आध्यात्मिक विकास के तीन सोपान हैं त्याग, वैराग्य और वीतराग। त्याग से पदार्थ छूटता है और वैराग्य से ममत्व टूटता है। वीतरागता से आनंद फूटता है। जब व्यक्ति स्व का राग, जाति का राग और संप्रदाय का राग छोड़ देता है तो वीतरागी बन जाता है।
साध्वी अपूर्वा ने कहा कि जहां संसार की स्मृति वहां आत्मा की विस्मृति और जहां आत्मा की स्मृति वहां संसार की विस्मृति होती है। शुद्ध सामायिक करने से भगवान की आज्ञा का पालन होता है।