चेन्नई. कोडम्बाक्कम-वडपलनी जैन भवन में विराजित साध्वी सुमित्रा ने कहा वंदना करने से मनुष्य को उसके इच्छानुसार सुख की प्राप्ति होती है। अगर सच्चे मन से वंदना की जाए तो जीवन में कोई बाधा उत्पन्न नहीं होगी। प्रभु ने वंदना शास्त्र का मूल पाठ दिया है इससे नीच कर्मों की निर्जरा होती है।
वंदना करते समय सच्ची भावना से मन, वचन और काया एक हो जानी चाहिए। दिखावे के लिए अगर वंदना किया गया तो उसका लाभ प्राप्त नहीं होगा। मनुष्य को यह मौका बहुत ही सौभाग्य से प्राप्त हुआ है। ऐसे मौके का अगर लाभ नहीं उठाया तो यह भव बेकार हो जाएगा।
सुख सुविधा के साधन तो बहुत है लेकिन अपने कर्मो की वजह से लोग उसका सुख नहीं भोग पा रहे हैं। मनुष्य के भावों से ही उसके कर्म बंधते हैं। जिनके अच्छे भाव होते हैं उनको सुख की तलाश नहीं करनी पड़ती है, बल्कि उनके भावों की वजह से सुख उनके पास आ जाता है।
जीवन मे आगे जाना बड़ी बात नहीं होती है बल्कि सही मार्ग से जाना बड़ा होता है। अगर गलत मार्गो से आगे बढ़ेंगे तो फिर से वापस आना ही होगा। सही मार्ग पर जाए बिना इस जीवन का कल्याण संभव नहीं है।
अगर दूसरों को सुख देंगे तो हम भी सुखी हो जाएंगे। वंदन करते समय प्रभु के गुण खुद में लाने के भाव होने चाहिए। ऐसे उत्कृष्ट भावों से मनुष्य को आचार्य देवो को नमस्कार वंदन करना चाहिए।
गुरुओं का एक भी गुण अगर मनुष्य के जीवन में आ जाए तो उसका कल्याण हो जाएगा। जीवन मे आगे वही जाते हैं जो संकल्प लेकर कार्य करते हैं।