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ज्ञान वाणी

लोक से दूर रहकर श्लोक में आनंदित रहना ही संयम: मुनि संयमरत्न विजयजी

लोक से दूर रहकर श्लोक में आनंदित रहना ही संयम: मुनि संयमरत्न विजयजी

चैन्नई के साहुकार पेठ स्थित श्री राजेन्द्र भवन में आचार्य श्री जयन्तसेनसूरिजी के सुशिष्य मुनि संयमरत्न विजयजी,श्री भुवनरत्न विजयजी के सान्निध्य में श्री नेमिनाथ परमात्मा के जन्म कल्याणक के अवसर पर “संयम उपकरण वंदनावली” का कार्यक्रम आयोजित हुआ।

आयंबिल,एकासणा,बियासणा, रात्रि भोजन-जमीकंद त्याग,मौन सामायिक आदि धार्मिक चढ़ावे बोलकर श्रद्धालुओं ने संयम उपकरणों को प्राप्त किया।जिसके माध्यम से हमारा भव भ्रमण कम हो वे उपकरण कहलाते हैं।

लोक से दूर रहकर श्लोक में आनंदित रहना ही संयम जीवन है। संसार जेल है, तो संयम महल है।मान मिले या अपमान मुनि का मन सबमें समान रहता है। जो स्वाद के लिए आहार ले वह स्वादु और जो साधना के लिए आहार ले वो साधु होता है। संयम और नियम दोनों जीवन का नियमन करते हैं। संसार का मार्ग सूना तो संयम का मार्ग सोना है।

मुनि श्री ने उपकरणों का महत्व बताते हुए कहा कि ‘रजोहरण’ हमारे अष्ट कर्मों की रज का हरण करता है। ‘मुहपत्ति’ जयणा की संपत्ति है, तो ‘पात्रा’ मुक्तिपुरी की यात्रा कराता है। ‘तरपणी’ आहार विहार में सहयोगी होती है।

‘श्वेत चादर’ व ‘चोलपट्टा’ मुनि की निर्मलता, उज्ज्वलता को दर्शाता है। ‘ कम्बल’ (कामली) मोक्ष मार्ग में सम्बल व सीधा चलने की प्रेरणा देता है। रात्रि में चलते समय जीवों की रक्षा करने हेतु ‘दंडासन’ उपयोगी होता है। ‘झोली’ हृदय में गाँठ नहीं रखने की बात कहती है, तो ‘संथारा’ व उत्तरपट्टा’ बिछाकर शयन करने से जागृति बनी रहती है।

‘ पुंजणी’ पात्र और घड़े में रहे सूक्ष्म जीवों की रक्षा करती है। ‘आसन’ व माला’ तप-जप में व ‘पुस्तक’ज्ञान वृद्धि में सहायक होती है।स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर मुनि श्री ने कहा कि भौतिक पदार्थों के प्रति रही हुई आसक्ति को छोड़कर जो आध्यात्मिक बन जाता है, वास्तव में वही स्वतंत्र होता हैं।

सांसारिक बंधनों में जकड़ा हुआ प्राणी तो आज भी परतंत्र है।कार्यक्रम के पश्चात् मुनिद्वय श्री साहुकार पेठ स्थित जैन भवन पहुंचे,जहाँ मरुधर केशरी श्री मिश्रीमलजी म.सा. व श्री रूपचंद जी म.सा. के जन्मदिवस के अवसर पर स्वरचित काव्य द्वारा मुनिश्री ने गुणानुवाद किया।

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