Share This Post

ज्ञान वाणी

लक्ष्य की तलवार जिसके सिर पर रहती है वह कहीं गफलत में नहीं रहता: उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि

लक्ष्य की तलवार जिसके सिर पर रहती है वह कहीं गफलत में नहीं रहता: उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि

चेन्नई. बुधवार को उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि एवं तीर्थेशऋषि महाराज ने वेपेरी, चेन्नई में रमेशकुमार, रौनक गुगलिया के निवास पर धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि सूर्योदय उनके काम आता है जिनकी आंखों में उजाला हो। जिनकी आंखों में उजाला नहीं उनके लिए तो हजारों सूर्य भी काम के नहीं है। वे अंधियारे में भी उजाला महसूस करते हैं। तीर्थंकर, गुरु, परमात्मा कब होंगे कब नहीं होंगे, इस पर हमारा नियंत्रण नहीं है, वो हमारे चाहने से नहीं होते, हमारा नियंत्रण अपने स्वयं पर होता है।

कई पंचेन्द्रिय होकर भी अंधे होते है। कई तीर्यंच होकर भी धर्मचक्षु संपन्न होते हैं। भावों और सत्य को देखने वाली दृष्टि महत्वपूर्ण है। हम वस्तु को देखते हैं। बादाम का हलवा थाली में परोसने वाले के भाव नकारात्मक हो तो वह हमें दिखाई दे जाते हैं। काश हर कदम पर आप भावों को देखते। आप उन परिस्थितियों में देखते हैं जब पदार्थ देनेवाले का भाव बराबर न हो। आप भावों को गाते तो रोज हैं, पर जीते कभी नहीं। अपने यदि स्वजनों, परमात्मा, गुरु और दु:खी के भावों को समझ लिया तो जीवन सार्थक हो जाएगा।

शब्द किसी के शाश्वत नहीं होते लेकिन भाव शाश्वत रहते हैं। स्वयं और दूसरों के भाव समझ में आने लग जाए तो, कैकेयी को भी राजमाता बनने का रास्ता सरल था। चक्रवर्ती बनना बुरा नहीं, धनवान बनना बुरा नहीं, लेकिन किस रास्ते से बनें यह सबसे महत्वपूर्ण है।

भक्ति के रास्ते पर आस्था से जानेवाले फूलों को ही चुनते हैं, कांटो को नहीं। तीर्थंकर के वचन तो फूलों से भी कोमल है।

हम बुरी बात को बहुत जल्दी फैलाते हैं लेकिन अच्छी बातों को नहीं। जब भी अच्छी बातों का विरोध होता है तो चुप रह जाते हैं। जिन लोगों ने परमात्मा की वाणी सुन भरत का अभिनन्दन किया था, उन्होंने बाहर जाकर जनता को अपने दिल की बात नहीं बनाई कि सत्ता के शिखर पर रहकर भी सत्य के साथ जीएगा। लेकिन जिसको बात चुभ गई थी उसने गलीगली और चौराहेचौराहे पर बताया और भगवान पर आरोप लगाए।

जो अभिनन्दन करने वाले थे उन्होंने बाहर अच्छी बात को फैलाया नहीं और परमात्मा की बात पर आक्षेप होते समय चुप रह गए। लगभग हमारी भी यही दशा है। जिसे हम अच्छा मानते हैं उसके खिलाफ बाहर कुछ होता है तो हम चुप रह जाते हैं। अगर गलत बोलने वालों के खिलाफ आप बोलेंगे कि यह गलत बोल रहा है तो दूसरे लोगों पर भी उसका गलत प्रभाव नहीं होगा।

आदमी की सबसे बड़ी विशेषता और सबसे बड़ी कमजोरी है कि जैसा सुनता है वैसा सोचता है। जिसके पास कान है उसी के पास मन है। कान के बाद भी मन की यात्रा शुरु होती है। मन को संभालने की जरूरत नहीं है, जिसने कान को संभाल लिया उसका मन संभल गया। मन को संभालने के कितने ही प्रयास करे मन संभलता नहीं है।

अपने परिवार और बच्चों का मन संभालना चाहते हो कि वे गलत नहीं सोचे तो उनके कानों पर गलत बात न जाने पाए। भाषा वही सीखी जाती है जो सुनी जाती है। इस कला में माहिर हो जाएं तो एकलव्य के समान भोंकने वालों का मुंह बंद कर दें और दुनिया सुधर जाए। इस युग के पहले चक्रवर्ती भरत ने उस निन्दा करनेवाले व्यक्ति का मुंह बंद करके बताया। नहीं तो पूरे परिवार का मन बिगड़ जाएगा। यदि समाज में किसी ऐसे व्यक्ति को आप आश्रय देते हैं तो आप समाज का नाश कर रहे हैं।

जब आंख, कान और मन एक हो जाए तो मंजिल मिल जाती है। कहीं जुबान बात करते समय दिल से बात कर ली जाए तो सारी समस्याएं सुलझ जाएगी। आप लोग जुबान से बात तो कर लेते हैं लेकिन दिल से नहीं करते हैं। जिसे मौत की तलवार दिख जाए वह सिद्ध बन सकता है। नहीं तो चाहे साधु, गृहस्थ या चक्रवर्ती हो उसे संयम की राह पर आने का रास्ता नहीं मिलता। उसे मोक्ष की मंजिल भी नहीं मिलताी।

लक्ष्य की तलवार जिसके सिर पर रहती है वह कहीं गफलत में नहीं रहता है। भरत की मंजिल सत्ता का शिखर नहीं था, उसे अपने कर्म के चक्र से बाहर निकलना था। इसलिए उसकी मंजिल उसके पास चली आई। उसके बल पर ही उसे अलंकारशाला में भी केवलज्ञान हो गया। हम भी उसको महसूस करें। यह तलवार किसी को भी नहीं छोड़ती, इसे कभी न भूलें। इसे याद रखनेवाले के कषाय स्वत: छूट जाते हैं।

Share This Post

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may use these HTML tags and attributes: <a href="" title=""> <abbr title=""> <acronym title=""> <b> <blockquote cite=""> <cite> <code> <del datetime=""> <em> <i> <q cite=""> <s> <strike> <strong>

Skip to toolbar