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ज्ञान वाणी

रिश्तों में सबसे निस्वार्थ संबंध माता का: स्वाध्यायी प्रेमलताबाई

यहां विराजित स्वाध्यायी प्रेमलताबाई बम्ब ने कहा बालक का चारित्र श्रेष्ठतम बनाने का कार्य मां करती है। वह परमात्मा की साक्षात प्रतिमूर्ति है जिसके चरणों में तीनों लोकों का सुख निवास करता है। संसार के अनमोल रिश्तों से सबसे पवित्र व निस्वार्थ संबंध माता का ही होता है।

वह जन्म देती है इसलिए जननी है। माता का कोई विकल्प एवं पर्याय नहीं है। बालक का सुख-दुख सबसे पहले जानने व समझने वाली मां ही है। वस्तुत: मां की ममता का कोई ओर-छोर नहीं। वह पूजा के योग्य है। विश्व के सभी सुख मां के स्नेह व दुलार के सामने तुच्छ हैं।

कोमलता, पवित्रता व अगाध वात्सल्य की प्रतिमूर्ति है मां। त्याग, तपस्या, प्रेम व बलिदान को कोमलता व पवित्रता से जोडक़र जिस देवी की प्रतिमूर्ति ईश्वर ने बनाई है वह मां ही है। मां के इस महान स्वरूप को हमें अपने हृदय में प्रतिष्ठित करना चाहिए। वह सर्वोत्तम तीर्थ है।

सभी तीर्थों की परिक्रमा करने से श्रेष्ठ मातृसेवा व मातृपूजा है। जो अपनी मां की आंखों को सजल होने से बचाता है उसके जीवन में कभी कोई कष्ट दस्तक नहीं देता। उसकी ममता  का ऋण किसी भी वस्तु से नहीं चुकाया जा सकता। मंत्री प्रफुल्लकुमार कोटेचा ने संचालन किया।

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