चेन्नई. शुक्रवार को श्री एएमकेएम जैन मेमोरियल, पुरुषावाक्कम में विराजित उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि एवं तीर्थेशऋषि महाराज ने नन्दीवर्धन और वर्धमान के प्रसंग से बताया कि कई बार रिश्ते जीवन में ऐसे मोड़ पर ले आते हैं कि हृदय में प्रेम रहते हुए भी मन में नासमझी और गलतफहमी के कारण व्यवहार बंद हो जाता है। हमारे रिश्तों में व्यवहार चाहे रहे ना रहे लेकिन आपसी प्रेम नफरत में कभी न बदले, मन में दुर्भावना न आए। नंदीवर्धन गलतफहमी के कारण छोटे भाई वर्धमान से दूर हो जाते हैं लेकिन उनके हृदय का प्रेम कम नहीं होता है। हमें उनके चरित्र की इस अच्छाई को अपने जीवन में उतारना चाहिए।
उत्तराध्ययन में कहा गया है कि यदि अपनों की कोई बात अच्छी न लगे या आप उससे सहमत न हो तो उसके बारे में कभी भी बुरा न बोलें, मन में तिरस्कार का भाव न लाएं। की बातों को गलत कह सकते हैं लेकिन व्यक्ति को कभी गलत न कहें। छोटा भाई वर्धमान सुंदर, लब्धिधारी, प्रजा का चहेता और सभी की समस्याओं का समाधान करने वाला है तो बड़ा भाई नंदीवर्धन उसकी प्रसिद्धि और अपनी अनदेखी को सहन नहीं कर पाता है।
वर्धमान बड़े भाई की किसी बात से असहमत होने पर गलत बात को अस्वीकार करते हैं लेकिन भाई को पूरा सम्मान देते हैं। लेकिन उनके मन में छोटे भाई के प्रति प्रेम और वात्सल्य होने पर भी स्वयं के पिछड़ापन को महसूस कर दु:खी भी है। जहां-जहां राजाज्ञा, कुल, धर्म, रीति-रिवाजों में अन्याय और दुराचार, होता है उसे वर्धमान अस्वीकार करते हुए प्रतिकार करते हैं। वे साधारण प्रजाजनों को भय के दबाव में अन्याय भी स्वीकारते हुए देखते हैं और जीवमात्र को भय से मुक्त करने की पीड़ा मन में लिए चिंतन में डूब जाते हैं।
वर्धमान के बार-बार विरोध से हिंसा और बलि के समर्थक पुरोहित नन्दीवर्धन के पक्ष में आ जाते हैं। वर्धमान अपने पिता और भाई को राजा का कर्तव्य तथा धर्म और रीति रिवाजों के साथ परमात्मा पाश्र्वनाथ के मूल संदेश स्मरण कराते हुए कहते हैं कि परंपराएं परमात्मा से बड़ी नहीं हो सकती। परमात्मा को माननेवाला परमात्मा के खिलाफ नहीं जा सकता। नंदीवर्धन के पास कोई उत्तर नहीं होता है। वर्धमान महसूस करते हैं कि इन सभी को भयमुक्त करना बहुत जरूरी है। वर्धमान अपने माता-पिता की संलेखना के बाद दीक्षा लेने का कहते हैं और नन्दीवर्धन उन्हें रोकते हैं।
दो वर्ष पश्चात वे दीक्षा ग्रहण करते हैं। वर्धमान की दीक्षा की रात जिसमें मिगसर माह की भयंकर सर्दी है, नन्दीवर्धन पूरी रात छोटे भाई की चिंता में दु:खी रहते हैं और सो नहीं पाते हैं और वे भोर होने से पहले ही उनसे मिलने को चल पड़े। वे देखते हैं कि काफी दूर एक किसान भगवान वर्धमान पर हंटर का प्रहार करने ही वाला है कि वे उसे दौड़कर पकड़ लेते हैं। वे राजकुमार होने का पता चलते ही वह किसान वहां से भाग जाता है। वर्धमान की साधना में कष्ट न हो और सुरक्षा के लिए नन्दीवर्धन कर्मचारी साथ रखने की बात कहते हैं। लेकिन वर्धमान जो अब केवल श्रमण बन गए हैं, कहते हैं कि साधना के पथ पर चलने वाला साधक अपने बल पर ही चलता है किसी के सहयोग से नहीं।
मंजिलें उसे ही मिलती है जो अपने कदमों से चलकर जाते हैं। नन्दीवर्धन को उस समय भी अपना तिरस्कार और उपेक्षा महसूस होती है और कहते हैं कि तुम्हें मेरी जरूरत नहीं तो मुझे भी तुम्हारी जरूरत नहीं और उसी दिन से वे अपना व्यवहार उनसे बंद कर देते हैं। वे कभी उनके समवशरण में नहीं जाते, कभी मिलते नहीं लेकन भाई प्रेम के कारण वे उनकी हर पल की खबर रखते हैं।
हम सभी को नंदीवर्धन के जीवन से यह प्रेरणा ग्रहण करनी चाहिए कि किसी से अहसमत होने पर उस व्यक्ति को ही गलत न ठहराएं। अपना विरोध भी इस प्रकार करें कि आपसी रिश्तों में दरार न आए और रिश्ते टूटे नहीं। वर्तमान में जैन समाज को गहराई से इतिहास और धर्म का अध्ययन करना, उससे जानना और अनुशरण करना परम आवश्यक है।
नहीं तो आनेवाले विकट समय में हम अपने हाथों की अपनी विरासत को नष्ट कर देंगे। परमात्मा ने जिसका इन्कार किया है उसे कभी न मानें। भयभीत चेतना वाले स्वयं के खिलाफ ही काम करते हैं, स्वयं का नुकसान करते हैं। परमात्मा ने जीवमात्र को अभयदान दिया है। स्वयं अभय होकर जीवमात्र को अभयदान दें। तीर्थेशमुनि ने प्रभु भक्ति भजन श्रवण कराया।
10 नवम्बर को 9 से 10 बजे तक वीरत्थुई विवेचन और दोपहर ”अर्हम कपल की पुस्तक विमोचन का कार्यक्रम होगा।