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रात्रि भोजन त्याग जरूरी: जयतिलक मुनिजी

रात्रि भोजन त्याग जरूरी: जयतिलक मुनिजी

नार्थ टाउन में गुरुदेव जयतिलक मुनिजी ने प्रवचन में फरमाया कि भगवान कहते है जिस काम का जो काल हो उस समय वह कार्य पूर्ण कर लेना चाहिए। प्रमाद नहीं करना चाहिए। शास्त्रो में कहा गया है कि रात्रि भोजन त्याग जरूरी  है। साधु के लिए रात्रि भोजन तो निषेध है ही पर गृहस्थ के लिए भी यही निर्देश है, पर आज गृहस्थों में शिथिलता आ गई है। परिमित भोजन करने से शरीर स्वस्थ रहता है। धक्का-मुक्की करते हुए किसी भी समारोह में आहार ग्रहण करना सभ्यता नही है। विवेक पूर्वक आचरण करना चाहिए। आहार की प्रशंसा नही करनी चाहिए अन्यथा कर्म बंध की सम्भावना रहती है। इसलिए ज्ञानीजन कहते है। भोजन करते समय मौन रखना चाहिए जिससे राग द्वेष से बचा जा सकता है। विनीत शिष्य को आज्ञा देकर काम करवाना सरल होता है परन्तु अविनीत शिष्य से काम करवाना कठिन होता है शिष्य को चाहिए कि वह न गुरू को कृपित करे और न ही स्वयं कुपित हो । सदैव अपने गुरु के निर्देशानुसार ही कार्य करना चाहिए।

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