चेन्नई. श्री मद उत्तराध्ययन सूत्र में अनाथी महामुनि का जीवन चरित्र विशेष का प्रेरणादायक है। कितनी ही ऐसी भव्य आत्माएं हैं जो मात्र उनका जीवन चरित्र सुनकर ही प्रतिबोध को प्राप्त हो गई। अनाथी महामुनि का जीवन चरित्र राग से वैराग्य की प्रेरणा देता है। यह विचार – ओजस्वी प्रवचनकार डॉ. वरुण मुनि ने जैन भवन साहुकारपेट में आयोजित धर्म सभा में उपस्थित श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। उन्होंने कहा मगध देश के राजा श्रेणिक जिनका नाम इतिहास के पृष्ठों में बिंबसार भी मिलता है। एक दिन महारानी चेलना की प्रेरणा से घोड़े पर सवार होकर उद्यान भ्रमण के लिए जाते हैं और वहां ध्यान साधना में तल्लीन अनाथी महामुनि के दर्शन करते हैं।
राजा श्रेणिक जो स्वयं अति सुन्दर और महान रूपवान थे, अनाथी मुनि के रूप- सौंदर्य को देख आश्चर्यचकित रह जाते हैं। युवा अवस्था, गठिला बदन, घुंघराले बाल, तोते सी तीखी नासिका, गहरी झील सी आंखे, वज्र सा वक्षस्थल- महामुनि के अंग-अंग से सौंदर्य झलक रहा है। राजा श्रेणिक ने कहा- महाराज ऐसी भरी जवानी में और इतनी कठोर मुनि चर्या? संत ने कहा मेरा कोई नाथ नहीं था।
जब सुना राजा ने-अरे! बेचारा ये मुनि अनाथ था तो कहने लगा मैं आपका नाथ बनता हूं। चलो मेरे महलों में हाथी-घोड़ा, नौकर-चाकर, सोना-चांदी, हीरे-जवाहरात सब आपकी सेवा में हाजिर कर दूंगा। वो महामुनि मुस्कुराए बोले जो स्वयं अनाथ है, वो मेरा नाथ क्या बनेगा? राजा को धक्का लगा, अहंकार बोल उठा – लगता है आपने मुझे ठीक से पहचाना नहीं, मैं मगधाधिपति राजा श्रेणिक हूं। मेरे पास राज्य है, रानियां हैं, वैभव का अंबार है।
मुनि ने कहा- राजन! इनसे ही कोई नाथ होता है तो मेरे घर में इन सबकी कमी नहीं थी। पर जब आंखों में वेदना हुई तो न परिवार काम आया, न सोना चांदी- हीरे-जवाहरात काम आए। तब स्वयं को अनाथ अनुभव किया मैंने। उस समय धर्म का शरणा लिया, मेरा रोग दूर हो गया। पहले मैं अनाथ था, अब सब जीवों की रक्षा करता हूं तो मैं नाथ बन गया सही अर्थों में। राजा ने सुना तो महामुनि के तप-त्याग साधना व धर्म भावना के सम्मुख नतमस्तक हो गया और राजा श्रेणिक के जीवन का भी रूपांतरण हो गया।