चेन्नई. मौन साधना के साथ आत्मध्यान की साधना भी बहुत जरूरी है। साधना ने महावीर को ऊचाइयों पर पहुंचा दिया था। साहुकारपेट जैन भवन में विराजित उपप्रवर्तक गौतममुनि ने कहा संतों की संगत में जो आता है उसे आनंद की प्राप्ति होती है। परमात्मा ने जगत के समस्त जीवों को सुखी होने के लिए मुक्ति के मार्ग का उपदेश दिया है।
शरीर को आहार की तरह आत्मा को भी मौन और धर्म की जरूरत होती है। यदि शरीर को समय समय पर आहार नहीं दिया जाए तो कमजोर हो जाता है। उसे बनाए रखने के लिए सही खुराक जरूरी है। वैसे ही अगर समय समय पर मौन और धर्म साधना नहीं हो तो आत्मा की शुद्धि भी अधूरी रह जाती है। आत्मा मौन से ही पुष्ट होती है। परमात्मा महावीर ने कई वर्षों तक मौन रख कर आत्मध्यान प्राप्त किया।
उन्होंने कहा दिनभर में कुछ देर मनुष्य को मौन रहना चाहिए। उन्होंने कहा मन को धर्म कार्यो में लगा कर ही रखना चाहिए। मन में शुद्ध विचार रखने से जीवन में शुभ कार्य होने लगते हंै लेकिन मन को अगर कुछ देर के लिए खुला छोड़ा जाए तो बड़ा अनर्थ भी हो जाता है। परमात्मा के बताए मार्गो का अनुसरण करने वालों को जीवन में अद्भुत आनंद की प्राप्ति होती है।
ध्यान साधना में जाने के बाद थोड़ा उतार चढ़ाव तो आता है लेकिन अंत में सब सही हो जाता है। सागरमुनि ने कहा अपने जीवन को सदगुणों से सजाने के लिए गुरु चरणों में समर्पित होने की जरूरत है। प्रभु भक्ति में लगने का मौका कभी नहीं खोना चाहिए। जीवन में अगर दया अहिंसा और धर्म नहीं है तो सब बेकार है। मनुष्य को ऐसे मार्गो का अनुसरण करना चाहिए। उन्होंने कहा अपने आचरण से उपदेश देकर परमात्मा ने मानव जीवन पर अनंत उपकार किए हैं। उनके दिखाए मार्गो का अनुसरण कर जीवन में बदलाव लाने का प्रयास करेंगे तो जीवन सुखमय बन पाएगा।