यहां जैन स्थानक में विराजित साध्वी मयंकमणि ने कहा वाणी संयम, मौन एवं मित भाषण जीवन दर्शन का मौलिक सूत्र है। मौन सर्वोत्तम भाषण है यदि बोलना ही है तो कम बोलो। एक शब्द में काम चल जाए तो दो मत बोलो। असत्य का प्रयोग वाणी से होता है।
मौन रहेंगे तो वाणी असत्य से दूषित नहीं होगी। भारत के बड़े-बड़े योगी, ऋषि, ज्ञानी एवं महात्मा मौन साधना में लीन रहते थे। मौन के मूल में संयम होना चाहिए। डर या अज्ञान के कारण मौन रहना मुनित्व नहीं हो सकता।
एक विचारक ने कहा है कि मद से उत्पन्न मौन पशुता है और संयम से उत्पन्न साधुता। मुनि मौन रहे या बोले लेकिन उसका लक्ष्य होना चाहिए। कठोर भाषा भी बहुत से प्राणियों का नाश करने वाली होती है। अत: ऐसी भाषा सत्य हो तो भी साधु को नही बोलनी चाहिए क्योंकि इससे पाप कर्म का बंध होता है।