चेन्नई. किलपॉक में रंगनाथन एवेन्यू स्थित श्री एससी शाह भवन में चातुर्मासार्थ विराजित आचार्य तीर्थ भद्रसूरिश्वर ने कहा मोक्ष का अर्थ है मोह का क्षय । मोह का क्षय करने के लिए ही धर्म शास्त्रों का मुख्य सार है ।
शब्दों को पढऩे से नहीं, भावार्थ को समझना पड़ेगा। मोह से वासना पैदा होती है। मनुष्य की वासना जिस चीज में पड़ जाती है उसकी कीमत बहुत बढ़ जाती है। जहां मनुष्य की वासना नहीं पहुंचती उसकी कीमत नहीं बढ़ती।
जिसकी जहां वासना होती है वहां ही उसका चित्त जाता है। उन्होंने कहा हमारी वासना केवल पदार्थ में ही है, आत्मा के चिंतन में नहीं । हमारी पहचान पदार्थ और पद के आधार पर होती है ।
आचार्य ने कहा आत्मा की असली पहचान शुद्ध चैतन्य स्वरूप है। उस स्वरूप को नहीं पहचानोगे तब तक आपकी आराधना अधूरी है। जो परमात्मा का ध्यान करता है वह स्वयं अरिहन्त बन सकता है ।
अरिहन्त अपने भक्तों को अपना स्थान देने को तैयार है। वे सभी जीवों को अपने समान बनाना चाहते है। यदि उनके विचारों के साथ हमारे विचार नहीं मिलेंगे तो वे हमको स्वीकार नहीं करेंगे । हमें मोह का त्याग कर परमात्मा के प्रति समर्पण भावना रखनी चाहिए।