चेन्नई. ताम्बरम जैन स्थानक में विराजित साध्वी धर्मलता ने कहा जिसमें मैं और मेरेपन का भाव है उस जीव को मोक्ष नहीं मिलता। अभिमानी कहता है जगत मेरा सेवक है मंै ही सब कुछ हूं जबकि विनयवान कहता है मंै जगत का सेवक हूं, प्रभु के सामने अल्पज्ञ हूं।
जहां नमस्कार है वहां पुरस्कार और जहां अहंकार है वहां तिरस्कार है। अभिमान से विराधना और विनय से साधना संपन्न होती है। जीवन यदि दूध है तो विनय उसे स्वादिष्ट बनाने वाली मिश्री है। जैसे ५० किलो दूध को नींबू की कुछ ही बूंद फाड़ देती हैं वैसे ही अभिमानी पूरे जीवन को बिगाड़ देता है। मद और पद मोक्ष मार्ग में बाधक है।
मिट्टी की काया और दौलत की माया का कोई भरोसा नहीं, जब तक भीतर के अहम की वायु रहेगी मानव फुटबॉल की तरह चारों गति में ठोकरें खाता रहेगा। अत: इन्सान को धन, ज्ञान, सौंदर्य व बल-तप किसी भी विषय का अहंकार नहीं करना चाहिए।
साध्वी अपूर्वाश्री ने कहा संसार के सुख तो क्षणिक हैं, ये भोगने में तो रुचिकर लगते हैं लेनि उनका पान करना अत्यंत कष्टकारक है। सम्यकदृष्टि जीव को संसार का सुख अच्छा नहीं लगता, वह इस जेल से मुक्त होने के बारे में ही सोचता रहता है।