चेन्नई. साहुकार पेठ स्थित राजेन्द्र भवन में विराजित मुनि संयमरत्न विजय ने कस्तूरी प्रकरण के ‘ब्रह्म-प्रक्रम’ का वर्णन करते हुए कहा कि दोनों हाथ से समुद्र को पार करने वाले, आकाश में पैरों से भ्रमण करने वाले, बिना कवच और बाणों के रणसंग्राम में युद्ध करने वाले, चतुर होने पर भी जंगल में भटकने वाले असंख्य लोग मिल जाएंगे।
उन्होंने कहा कि मृत्यु को मिटाना मुमकिन नहीं, किंतु जीवन को सुधारना मुमकिन है, जीवन को सुधार लो, मृत्यु भी सुधर जाएगी और परलोक भी सुधर जाएगा।
किंतु चित्त को चलायमान कर देने वाली स्त्रियों के परिचय में आने पर भी जो विचलित न हो,ऐसे तो कुछ विरले ही जगत में होते हैं। पतंगाओं से जैसे सूर्य नहीं ढकता, हिरणों से जैसे केसरी सिंह, राक्षसों से इंद्र, सर्पों से गरुड़ और पवन के समूह से मेरु पर्वत चलायमान नहीं होता।
वैसे ही जिसका हृदय स्त्रियों को देखकर विचलित नहीं होता, वे पुरुष सदैव वंदनीय, स्मरणीय होते हैं। दुर्जन के हृदय में गुप्त बात, समुद्र के शिखर पर पानी, युद्ध मैदान में कायर, उत्तम मुनि के मन में क्लेश और पर्वतों पर जैसे पवन नहीं टिकता। वैसे ही जिसके हृदय में स्त्रियों का निवास नहीं रहता, वे पुरुष नमन करने योग्य है। अल्प समय का भी विषयसुख दीर्घकाल के दु:ख का आमंत्रण है।