चेन्नई. अयनावरम स्थित जैन दादावाड़ी में विराजित साध्वी डा. महाप्रज्ञा ने कहा मानव जीवन घटनाओं और दुर्घटनाओं का मेला है। इस मेले में अनेक व्यक्तियों के साथ गुजरते हुए कुछ, ताव, टकराव और बिखराव के प्रसंग पैदा होते रहते हैं।
परिणामत: मानव का मस्तिष्क अनेक प्रश्न, उलझन एवं समस्या जैसी गलतफहमियों का शिकार हो जाता है। इस तरह की ग्रंथियों से उसका मन बोझिल बना रहता है। यदि चिंतन की गहराई में जाकर इन सारी ग्रंथियों का मूल खोजा जाए तो वह है आग्रह। अपनी सोच को सच मानकर उससे चिपक जाने का नाम है आग्रह।
ऐसी स्थिति में हम दूसरे के दृष्टिकोण को गलत समझकर गौण कर देते हैं। उनके विचारों का अनादर कर देते हैं। हमें चाहिए कि जिस संसार में हम रहते हैं उसमें हर वस्तु द्वंद्वात्मक स्थिति में है वह चाहे व्यक्ति हो, वस्तु, घटना या फिर परिस्थिति हो। फूल है तो शूल भी है, सुख है तो दुख भी है, शुभ है तो अशुभ भी है, अमृत है तो जहर भी है।
ऐसे में हमें दोनों ही पक्षों को सहज स्वीकार करना चाहिए। इससे जीवन में दुख, अशांति और उद्विग्नता समाप्त हो जाएगी एवं जीवन आनंदमय हो जाएगा।
साध्वी ने कहा हमें जीवन में विभिन्न प्रकार के लोग मिलते हैं लेकिन सबके विचार व व्यवहार अलग होता है। इसलिए जीवन की सच्चाई को झेलने के लिए मानव का अनाग्रही होना जरूरी है।
भगवान महावीर ने कहा है इस संसार का हर व्यक्ति जैसा चाहता है, सोचता, बोलता व पहनता है वैसे ही सब हो ऐसा संभव नहीं है। जिस प्रकार एक न्यायाधीश का दृष्टिकोण अपने घर और कोर्ट में अलग होता है। हर वस्तु के अनेक पहलू होते हैं, कोई किस दृष्टि से तो कोई किस दृष्टि से देख सकता है।
इसलिए हमें दूसरों के विचारों को भी समझने का प्रयास करना चाहिए क्योंकि हो सकता है वे भी सच हों। साध्वी ने कहा अहंकार से व्यक्ति पतन निश्चित होता है। न तो कोई व्यक्ति गरीब होता है और न ही कोई अमीर। मानव अपने कर्मों से ही गरीब और अमीर होता है। व्यक्ति अपने घर में नहीं पाप-पुण्य के घर में रहता है। पुण्य करो वही पुण्य का घर है और पाप करोगे तो वही पाप का घर बन जाएगा।