एमकेबी नगर में विराजित साध्वी धर्मप्रभा ने कहा संसार में मायाजाल और कपट का साम्राज्य फैला हुआ है। माया से कोई भी अछूता नहीं है। चारों गतियों नरक, तिर्यंच, मानव और देव सभी में माया बसी हुई है। माया कुटिलता का वह विषैला कांटा है जो क्लेश उत्पन्न करता है।
उन्होंने कहा मायावी और प्रमादी जीवात्मा का जन्म-मरण कभी खत्म नहीं होता। माया का दंभ करने वाला मरने के बाद नरक गति को प्राप्त होता है। मायावी जीव की कभी सद्गति नहीं होती व कपटी जीव को कभी शांति नहीं मिलती।
साध्वी स्नेहप्रभा ने कहा शास्त्रों में जीवों के भावों की परिणति तीन प्रकार की बताई गई है पुण्यरूप, पापरूप और शुद्धोपयोगरूप। इनमें से पहली दो परिणतियां कर्मबंध रूप हैं जबकि तीसरी शुद्धोपयोगरूप परिणति भव सागर से पार करने वाली।