मानवता की राह फूलो नहीं बल्कि काटो भरी होती है। फूल तो स्वभाव से कोमल होता है पर शूल को कोमल बनाना आपकी विशेषता को दर्शाता है। यही गुण गुरुदेव सौभाग्यमालजी में भरे पड़े थे। ताम्बरम में विराजित साध्वी धर्मलता ने अपने प्रवचन में कहा की हमे खुद को ऐसा बना चाहिए जिससे की शूल भी फूल में बदल जाए।
जन्म तिथि और पुण्य तिथि महापुरषो की मनाई जाती है। महापुरुष धरती पर महावीर का सन्देश सुनाने हेतु अवतरित होते है। साध्वी ने श्री सौभाग्यमालजी की 34वी पुण्य तिथि पर कहा की उनका जन्म 1953 में हुआ था।
जब वो दो वर्ष के तभी उनके ऊपर से माता पिता का साया उठ गया। इसके बावजूद उन्होंने धर्म का मार्ग अपनाया। वे अपने प्रवचन में गीता, बाइबिल, कुरआन आदि ग्रन्थ का उल्लेख करते थे। उनका कहना था की मनुष्य को धर्म विशेष को नहीं बल्कि उसकी अच्छाइयों को स्वीकार करना चाहिए। श्रमण संघ की स्थापना में उनका महत्वपूर्ण योगदान है।