कोलकाता. दुखी आत्मा में ही परमात्मा का निवास है। माता-पिता और गुरु की सेवा 4 धाम की यात्रा से बढक़र है। किसी अनजान अपरिचित इंसान या वैसे प्राणी जिससे दुर्गंध आ रही है, जो पीड़ा से कराह रहा हो, उसे देखकर निष्काम-निस्वार्थ भाव से परमात्मा का स्वरूप मानकर सेवा में समर्पित होने वाला ही परमात्मा का सच्चा उपासक है। राष्ट्रसंत कमल मुनि कमलेश ने मंगलवार को पर्युषण पर्व पर आयोजित निशुल्क चिकित्सा शिविर को सेवा दिवस के रूप में संबोधित करते हुए यह उद्गार व्यक्त किए। मुनि ने कहा कि चारों तीर्थों की यात्रा का सार सेवा ही है।
कर्मकांड उपासना को गौण कर जो सेवा कार्य को प्राथमिकता देता है, वही सच्चे धर्म का पालन करता है और ऐसे क्षणों को अनदेखा कर पूजा-पाठ में लगा रहना, साधना करना मुर्दे को श्रृंगार कराने के समान है। ऐसी आत्मा को 3 काल में भी धर्म में प्रवेश नहीं हो सकता। मुनि ने कहा कि सेवा सबसे कठिन धर्म है और सबसे श्रेष्ठ है विश्व के सभी धर्म की उपासना पद्धति में अंतर होने के बावजूद सेवा। उन्होंने कहा कि महापुरुषों ने स्वयं ने सेवा धर्म अपनाकर पूजनीय स्थान प्राप्त किया।
दुखी-पीडि़त जीवित आत्माओं को अनदेखा, उपेक्षा कर परमात्मा को मनाने चलना हास्यास्पद और दुखद है। मुनि ने कहा कि आज जितना समय और पैसा धर्म के कर्मकांड पर लगाए जा रहे हैं, उतना अगर पीडि़तों-दीन-दुखियों की सेवा में लगाया जाए तो धरती स्वर्ग में परिवर्तित हो सकती है। ऐसा करने वाला धरती पर चलता-फिरता तीर्थ है। माता-पिता और गुरु की सेवा 4 धाम की यात्रा से बढक़र है और उसी में मोक्ष का निवास है।
उन्होंने कटाक्ष करते हुए कहा कि जिंदा इंसान को पानी नहीं पिलाना और निधन के बाद उसके चित्र की पूजा करने से बड़ा अज्ञानता का द्योतक और क्या हो सकता है? जैन संत ने सभी धर्माचार्यों से सेवा को धर्म का अभिन्न अंग बताते हुए प्राथमिकता देने का आह्वान किया। मुनि ने कहा कि आज बच्चे कुपोषण के शिकार हो अकाल मृत्यु के शिकार हो रहे हैं, बीमारी से छटपटा रहे हैं, वृद्धावस्था अभिशाप बनती नजर आ रही है।
आध्यात्मिकता की दुहाई देने वालों के मुंह पर यह एक करारा तमाचा है। उन्होंने व्यंग्यात्मक लहजे में कहा कि आजादी के इतने वर्षों बाद भी रोटी-कपड़ा-मकान, शिक्षा और चिकित्सा के लिए लोगों को कदम-कदम भटकना पड़े यह सरकार के विकास के दावों की पोल खोलती है। डॉ. निर्मला पिपाडा के नेतृत्व में शिविर का आयोजन हुआ, जिसमें 90 लोगों ने हड्डियों का परीक्षण कराया। कौशल मुनि ने अंतगढ़ सूत्र का वाचन किया।