चेन्नई. वेपेरी में विराजित मधुकर ‘अर्चना’ सुशिष्या साध्वी कंचनकुंवर सहित सहवर्तिनी साध्वीवंृद के प्रवचन कार्यक्रम के दौरान शनिवार को साध्वी डॉ.उदितप्रभा ‘उषा’ ने कहा जैन दर्शन में तीन शब्द राग-विराग-वीतराग बड़े ही महत्वपूर्ण हैं जिन्हें गहराई से समझने की आवश्यकता है। राग- किसी से जुड़े हुए। धन, अर्थ, सम्पत्ति से पद प्रतिष्ठा, पत्नी, परिवार सभी से आसक्ति संसार की धुरी पर ही चलता है।
यह राग हमें पाप से भारी बनाता है, धर्म से विमुख करता है। वीराग- अर्थात् अब उन सबके प्रति उपेक्षा हो गई। जिनके प्रति राग था। पदार्थों के राग का त्याग। संसार के साथ नहीं संयम के सम्मुख। संसार में मालिक नहीं मेहमान बनकर जीवन जीता है। वीतराग- राग, वीराग का भाव निकल गया तो न अपेक्षा न उपेक्षा है, न गम न अनगम, न रुचि और न अरुचि।
महावीर का मार्ग न राग का है न वीराग का। प्रभु का मार्ग वीतरागता का है। जैन से ऊपर उठकर जिनत्व की ओर कदम बढ़ा दिए तो अवश्य ही वीतरागता को उपलब्ध हो सकते हैं।
साध्वी डॉ.इमितप्रभा ने कहा कि जीवन में जो भी अनुभव कर रहे हैं वह सभी कर्म के निमित्त से। इनमें चार कर्म आत्मा से जुड़े हैं और चार कर्म शरीर से संबंधित हैं। आत्मा के चार कर्म में मोहनीय कर्म की सत्ता बड़ी बलशाली है। मोहनीय कर्म के द्वारा ही क्रोध, अहंकार, माया, राग, द्वेष होता है। ये कर्म ही संसार सागर बढ़़ाता है। यदि संसार सागर से पार होना है तो मोह को छोडऩा होगा। मोह को छोडऩे के लिए ‘पर’ से ‘स्व’ में आना होगा।
इससे पूर्व साध्वीवृन्द कोसापेट से विहार कर रिखबचंद गौतमचंद आनन्द लोढ़ा के निवास स्थान पर पहुंचीं। प्रात: की गई प्रार्थना के बाद गौतमचंद-संगीता लोढ़ा ने आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत स्वीकार किए एवं सुश्राविका संतोष बागमार ने २८ उपवास के पच्चखान किए। शील आराधना तप आराधना का भक्तगणों ने अनुमोदन किया। रविवार को ओमप्रकाश दीपेश मेहता के निवास पर साध्वी कंचनकंवर सहित अर्चना सुशिष्या मंडल का प्रवचन होगा।