चेन्नई. कोंडितोप में चातुर्मासार्थ विराजित आचार्य पुष्पदंत सागर ने प्रवचन में कहा, राग-द्वेष का सबसे बड़ा कारण मन होता है। मन पर अंकुश लगाना और इसे संयम से बांधना जरूरी है।
अगर हमने मन को अपने वश में कर लिया तो इस भव सागर से तरना संभव है। आचार्य ने कहा जब ओस की बूंद कमल पत्र पर ठहरती है तो वह मोती के समान चमकती है। परमात्मा उस कमल पत्र के समान है और भक्त ओस की बूंद।
भक्त को परमात्मा की शरण मिलते ही दिव्यता प्राप्त हो जाती है। उन्होंने कहा हमारा शरीर भी ओस की बूंद की तरह कमजोर और क्षणिक टिकने वाला है फिर भी इंसान नश्वर दुनिया के पीछे पागल है। शरीर का उपयोग कैसे किया जाए यह हम पर निर्भर है।
यदि इसका सदुपयोग किया जाए तो सोना बन सकता है और दुरुपयोग किए जाने पर मिट्टी से भी बदतर। इस लिए हमें शरीर का सदुपयोग करना चाहिए। आचार्य ने कहा नकारात्मक विचार जीवन के उत्साह को कम कर देते हैं और सकारात्मक विचारों से जीवन में उत्साह बढता है।