जयगच्छाधिपति व्याख्यान वाचस्पति, वचन सिद्ध साधक, उग्र विहारी, बारहवें पट्टधर आचार्य प्रवर श्री पार्श्वचंद्र जी म.सा. के आज्ञानुवर्ती एस.एस.जैन समणी मार्ग के प्रारंभकर्ता डॉ. श्री पदमचंद्र जी म.सा. की सुशिष्याएं समणी निर्देशिका डॉ. समणी सुयशनिधि जी एवं समणी श्रद्धानिधि जी आदि ठाणा 2 के पावन सान्निध्य में श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ के तत्वावधान में गुवाहाटी नगरी के श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन भवन में एक विशाल धर्म सभा को सम्बोधित करते हुए समणी डॉ. सुयशनिधि जी ने कहा कि मनुष्य का यह परम सौभाग्य है कि वह परमात्मा पद को प्राप्त करने की साधना कर सकता है।
मनुष्य रोते – रोते जन्मे और सोते – सोते मर जाए तो इस मानव जीवन का कोई महत्व नहीं। यदि मनुष्य मुट्ठी बांधकर जन्में और मुट्ठी खाली करके चल बसे तो इस स्थिति में जानना कि मानव जीवन को यूं ही गंवाया। डॉ. समणी ने कहा कि यह जीवन तो सुवर्ण मिट्टी के समान है। इसमें सुवर्ण के अंश को और मिट्टी के अंश को अलग करना, इसी में जीवन की कृतार्थता, पूर्णता और सफलता है।
जिस प्रकार परीक्षा से पहले तैयारी अती आवश्यक है ठीक उसी प्रकार आत्म सुख प्राप्त करने हेतु इस चातुर्मास कालीन पूर्व तैयारी नितांत आवश्यक है। ज्ञान ध्यान जप तप सम्यक प्रकार से हो, इसलिए प्रेरणा दी गई। चातुर्मास के दौरान अट्ठम तप की कड़ी, उपवास की लड़ी, एकासन एवं आयंबिल की लड़ी का भी आयोजन रखा गया है।
अनेक श्रावक श्राविकाओं ने अपना नाम अंकित करवा कर अपने आप को लाभान्वित कर रहे हैं। दोपहर 2 बजे से 4 बजे तक श्री जयमल जैन आध्यात्मिक ज्ञान ध्यान संस्कार शिविर आयोजित किया गया जिसमें अनेक बच्चों बड़ों ने भाग लिया। महिमा, सुभाष बेताला आदि ने भजन की प्रस्तुति दी।