आचार्य आनंदऋषि की जयंती मनाई
चेन्नई. कोडमबाक्कम-वड़पलनी जैन भवन में विराजित साध्वी सुमित्रा के सानिध्य में गुरुवार को तप,त्याग और धर्म के साथ आचार्य आनंदऋषि की जयंती मनाई गई। जयंती के अवसर पर श्रावक श्राविकाओं ने आयंबिल के तप किए। साध्वी सुमित्रा ने कहा कि जैन संस्कृति और समाज में आचार्य का बहुत महत्व हुआ करता है।
आचार्य आनंदऋषि ने साधना, तप, त्याग और भलाई कर मनुष्य को अच्छे मार्गो पर चलने का उपदेश दिया है। आचार्य की वजह से तीर्थंकरों की परंपरा आज भी शुद्ध परंपरा बनी हुई है। वे समाज की बहुमूल्य सरोहर थे और उन्होंने खुद को ऊंचाई पर ले जाने के साथ दूसरों को भी वही मार्ग बतलाया है।
उन्होंने कहा कि महापुरुषों की जयंती मानव भव के कल्याण का संदेश लेकर आती है। महापुरुषों के बताए मार्गो पर चल कर मनुष्य भी अपने जीवन का कल्याण कर सकता है। जिस प्रकार से आचार्य का नाम आनंद था उसी प्रकार से वे आनंद स्वभाव के भी थे। उनके स्मरण से जब मानव को शांति की अनुभूति होती है तो सोचो उनके बताए मार्ग पर चलने से क्या मिलेगा।
अगर श्रद्धा भक्ति से गुरुओं का गुणगान किया जाए तो मनुष्य को अनेकों लाभ की प्राप्ति होगी। उन्होंने कहा कि किसी मनुष्य का गुणगान नही होता बल्कि उसके गुणों, व्यक्तिव और स्वभाव का गुणगान होता है। मनुष्य की असली पहचान उसके अंदर के गुणों से होती है। दुनिया से जाने के बाद मनुष्य और उसके देह को याद नही किया जाता है।
अगर याद किया जाता है तो उसके गुणों और व्यक्तित्व को किया जाता है। उन्होंने कहा कि मनुष्य भव मिला है तो खुद में अच्छे गुण और अच्छा व्यक्तित्व पैदा कर लेना चाहिए। महापुरुषों की जयंती उनके इन्ही गुणों की वजह से मनाई जाती है।
गुणानुवाद में अगर उनके एक भी गुण मनुष्य के जीवन मे आ जाए तो जीवन का कल्याण हो जाएगा। आज का संचालक मंत्री देवीचंद बरलोटा ने किए।