चेन्नई. एमकेबी नगर जैन स्थानक में विराजित साध्वी धर्मप्रभा ने कहा आज धनवान और निर्धन दोनों ही अंधी दौड़ में हैं। निर्धन अपना पेट पालने के लिए तो धनवान अपनी पेटी भरने के लिए दौड़ रहा है। उनकी पेटी इतनी गहरी होती है कि कभी भरने का नाम ही नहीं लेती। जो लोग जीवनभर हीरे-मोती और माणक-मोतियों का संग्रह करने में लगे रहते हैं उनको ज्ञानियों ने मूढ़ बताया है क्योंकि इस पूरी पृथ्वी पर केवल तीन ही रत्न हैं जिनके बिना मानव व तिर्यंच का जीवन संभव नहीं है। इसलिए कभी भी अन्न का अनादर नहीं अनादर नहीं करना चाहिए। अन्न जूठा छोडऩा सबसे बड़ा पाप है। भूख से बढ़कर कोई वेदना और रोग नहीं है।
साध्वी स्नेहप्रभा ने कहा विषयों में आसक्ति होना बंधन और इनमें आसक्ति होना मुक्ति है। अज्ञानी आत्मा द्रव्य निद्रा से मुक्त होने पर भी सोई रहती है जबकि एक ज्ञानी और संत की आत्मा द्रव्य में सोई होने के बावजूद जाग्रत ही रहती है। अज्ञानियों का पूरा समय पाप, अधर्म, आस्रव-व्यसन सेवन, झूठ, निंदा, विकथा और प्रमाद में ही व्यतीत हो जाता है जबकि संत यह भली भांति जानता है कि मानव भव कई जन्मों की साधना के बाद मिला है इसलिए वह इसे व्यर्थ पापकर्म में ही व्यर्थ नहीं जाने देता।