Share This Post

ज्ञान वाणी

भाव से ही भव और स्वभाव बदलता है: मुनि विजयजी

भाव से ही भव और स्वभाव बदलता है: मुनि विजयजी

गुंटूर के आर.अग्राहरम स्ट्रीट स्थित राज-राजेन्द्र भवन में आचार्य श्री जयन्तसेनसूरिजी के सुशिष्य मुनि श्री संयमरत्न विजयजी, मुनि भुवनरत्न विजयजी ने धर्म सभा को संबोधित करते हुए कहा कि भाव के बदलते ही भव बदल जाते है।

जिसकी जैसी भावना होती है,उसे वैसी ही कार्यसिद्धि होती है। मन ही बंधन और मोक्ष का कारण है। विषयों के प्रति आसक्त मन ही हमें बंधन की ओर ले जाता है और वीतरागता में आसक्त मन हमें मोक्ष की ओर ले जाता है। जिसका मन और इंद्रियों पर नियंत्रण नहीं होता वह प्राणी अयोग्य कहलाता है और अयोग्य प्राणी में समता की बुद्धि का संचार नहीं होता।

सद्भावना से ही शांति की प्राप्ति होती है।जिसमें शुभ भावना नहीं होती उसे शांति व सुख की प्राप्ति भी नहीं होती। मोह-विषाद के विष से व्याप्त जगत में शुद्ध भावना के बिना विद्वान पुरुषों के मन में भी शांति का संचार नहीं होता और शांति के अभाव में सुख की उपलब्धि भी नहीं होती। मन के अच्छे रहने पर भावना भी शुभ रहती है। जो विरक्त भाव वाला,राग द्वेष रहित होता है उसका जीवन शोक रहित बन जाता है।

Share This Post

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may use these HTML tags and attributes: <a href="" title=""> <abbr title=""> <acronym title=""> <b> <blockquote cite=""> <cite> <code> <del datetime=""> <em> <i> <q cite=""> <s> <strike> <strong>

Skip to toolbar