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भावों का शुद्ध होना आवश्यक : वीरेन्द्रमुनि म.सा.

भावों का शुद्ध होना आवश्यक : वीरेन्द्रमुनि म.सा.

सेलम. वर्धमान स्थानकवासी जैन संघ सेलम के महावीर भवन में विराजित श्री वीरेन्द्रमुनि म.सा. ने सेलम शंकर नगर स्थित जैन स्थानक में चातुर्मासिक प्रवचन जैन दिवाकर दरबार में  धर्म सभा में संबोधित करते हुए कहा कि जितना संसार के कानों के प्रति हमारा आकर्षण होता है, क्या उतना धर्म के प्रति भी होता है ?

संसार में घूमना फिरना मौज मस्ती में नाटक खेल तमाशों में रुचि होती है उतनी धर्म के प्रति हो तो संसार का परिभ्रमण मिट सकता है, परंतु ऐसा नहीं होता है क्योंकि भावना में उत्कृष्टता नहीं आती अगर भावना में आत्मा रमण करने लग जाए तो बेड़ा पार हो सकता है। मरुदेवी माता ने हाथी के ऊपर अंबावाड़ी में बैठे-बैठे ही कर्म काट करके मोक्ष को प्राप्त किया। 

उन्होंने कहा, भावों में शुद्धता की आवश्यकता है। जिस प्रकार संसार में मोह रूपी चुम्बक (मैग्नेट) होने से हमारा खिंचाव धन संपत्ति वैभव पुत्र परिवार के प्रति होता है, वैसा मेग्नेट  धर्म के प्रति है क्या?  हम सिर्फ शरीर के प्रति ही हैं, आत्मा के प्रति कोई खिंचाव कोई चिंतन नहीं है, अनादि काल से यही चलता आ रहा है जितना खेल तमाशे नाटक आदि देखने में रस आनंद आता है उसका थोड़ा सा अंश  भी धर्म के प्रति और भगवान की वाणी के प्रति आ जाउ तो जन्म,जरा और मृत्यु के भंवरजाल से आत्मा मुक्त हो सकती है।

इसलिये हमें इस चातुर्मास काल में धर्म ध्यान तप त्याग दया दान में जुड़ जाना चाहिढ।  मुनिश्री ने कहा रात्रि भोजन जैन धर्म में निषेध है, रात्रि भोजन से हमारे शरीर में अनेक प्रकार की बीमारियां उत्पन्न होती है क्योंकि देर रात में खाने से भी भोजन पेट में ही पड़ा रहता है और फिर सो जाते हैं।

जबकि दिन में भोजन करने से हजम भी हो जाता है, भोजन करने के बाद दो-चार घंटे सोने में गैप होना चाहिये जिससे भोजन आसानी  से पच जाता है।

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