माधवरम में जैन तेरापंथ नगर स्थित महाश्रमण सभागार में आचार्य महाश्रमण ने ‘भगवान महावीर की अध्यात्म यात्रा’ के अंतर्गत त्रिपृष्ठ भव की घटनाओं पर प्रकाश डालते हुए कहा आदमी के जीवन में व्यवहार का बहुत महत्व होता है। भावना हो तो परिवार में बिखराव नहीं प्रेम हो सकता है।
सद्व्यवहार से परिवार में सुख-शांति का माहौल कायम हो सकता है। जहां परस्पर सहयोग, व्यक्तिगत स्वार्थ की बात न हो उस परिवार में मानो सुख का पारावार आ सकता है। वह सबसे सुखी परिवार हो सकता है। उन्होंने कहा माना महाव्रत का बहुत ऊंचा राजमार्ग है लेकिन इस पर चलना सबके लिए मुश्किल हो सकता है इसलिए सामान्य आदमी छोटे-छोटे संकल्पों के द्वारा भी अपने जीवन को आध्यात्मिक गति दे सकता है।
कोई आगंतुक आ जाए तो उसका सम्मान करने का प्रयास करना चाहिए। आगंतुकों का यथोचित सत्कार व सम्मान किया जाना चाहिए। समुचित सम्मान का व्यवहार हो, उदारतापूर्ण व्यवहार हो और परस्पर सहयोग की भावना हो तो जीवन कितना अच्छा हो सकता है। आज परिवारों में तनाव और भाई-भाई में ही टकराव की स्थिति हो जाती है। परिवार में कलह, भ्रूणहत्या, दहेज, लोभ, तलाक जैसी घटनाओं पर विराम लगाने के लिए सभी के प्रति समुचित सम्मान, उदारतापूर्ण व्यवहार और परस्पर सहयोग और सौहार्द की
इन व्रतों को स्वीकार करने के लिए किसी का जैन होना अनिवार्य नहीं। यदि कोई घोर नास्तिक हो तो वह भी यदि इन व्रतों का अनुपालन करे तो उसके जीवन में व्यापक परिवर्तन आ सकता है। अणुव्रत केवल गृहस्थी ही नहीं साधु भी महाव्रतों के साथ-साथ अनेक छोटे-छोटे व्रत स्वीकार कर अपनी साधना को और अधिक पुष्ट बना सकते हैं।