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ज्ञान वाणी

भारतीय संस्कृति ने इंसान को भोग से योग की ओर जाने का मार्ग सिखाया – राष्ट्रसंत ललितप्रभ

भारतीय संस्कृति ने इंसान को भोग से योग की ओर जाने का मार्ग सिखाया – राष्ट्रसंत ललितप्रभ
 मुंबई। पर्युषण एवं संवत्सरी पर्व पूर्णाहुति के पावन अवसर पर बोरीवली वेस्ट स्थित कोरा केन्द्र मैदान में आयोजित सामूहिक पारणा महोत्सव में सैकड़ों श्रद्धालुओं ने अपनी तपस्या का पारणा किया। महोपाध्याय ललितप्रभ सागर महाराज, महान दार्शनिक संत चन्द्रप्रभ महाराज और मुनि शांतिप्रियसागर महाराज के सान्निध्य में आयोजित इस पारणा कार्यक्रम में 600 से अधिक भाई-बहनों ने पारणा किया। व्यवस्था पारणा समिति के पारस चपलोत, मनोज मनवट, षंकर घीया, जितेन्द्र रांका, किषोरचंद डागा, गौतम भंसाली आदि संभाली गई।
इस अवसर पर 48 और 30 उपवास के तपस्वी का पारणा गुरुदवों के सान्निध्य में हुआ। श्रद्धालुओं ने इस दौरान गुरुजनों के पात्रों में दूध भी समर्पित किया। राष्ट्रसंतों ने पारणे का विधिविधान करवाते हुए महामांगलिक प्रदान की।
राष्ट्रसंत श्री ललितप्रभ महाराज ने कहा कि दुनिया में दो तरह की संस्कृतियाँ हैं: भोग संस्कृति और योग संस्कृति। इन्द्रियों के वशीभूत हो जाना भोग संस्कृति है और इन्द्रियों को वशीभूत कर लेना योग संस्कृति है। जहाँ खाने के लिए जीना भोग है वहीं जीने के लिए खाना योग है। दुनिया में भारतीय संस्कृति ही ऐसी संस्कृति है जिसने इंसानियत को भोग से योग की ओर जाने का मार्ग सिखाया।
उन्होंने कहा कि दुनिया में वैभव कितना ही महान क्यों न हो, पर वह त्याग से कभी-भी महान नहीं हो सकता। अगर महावीर और बुद्ध जैसे लोग राजवैभव को भोगते तो अन्य राजाओं की तरह कभी के भुला दिए जाते, पर राजपाट का त्याग करने के कारण आज भी वे करोड़ों लोगों के  दिलों में राज कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि एक तरफ सोने से निर्मित सिकन्दर की मूर्ति हो और दूसरी तरफ निर्वस्त्र महावीर की प्रतिमा हो तो श्रद्धा से सिर तो महावीर के  चरणों में ही झुकेगा। याद रखें, भारत की आत्मा समृद्धि में नहीं, समृद्धि के त्याग में बसती है इसीलिए तो तिरंगे में त्याग का प्रतीक केसरिया रंग सबसे ऊपर रखा गया है।
क्रोध का त्याग भी उपवास है-संतश्री ने कहा कि भोजन का उपवास करना अच्छी बात है, पर भोजन का त्याग न कर पाओ तो क्रोध का त्याग कर दीजिए। क्रोध का त्याग भी उपवास की तरह लाभकारी है। उन्होंने तपस्या के विविध रूपों को जिक्र करते हुए कहा कि स्वस्थ जीवन जीने के लिए महिने में एक दिन उपवास करें, भूख से दो कौर कम खाएं। जहाँ ज्यादा खाने से बीमारी बढ़ती है वहीं कम खाने से बीमारी कटती है। भोजन करते समय मौन रखें इससे व्यक्ति उग्र प्रतिक्रियाओं से बचा रहता है और रात्रि भोजन का त्याग करें। इस छोटे से त्याग मात्र से व्यक्ति सालभर में छः महिने उपवास करने का लाभ प्राप्त कर लेता है।
प्रलोभन मुक्त हो तपस्या-तपस्या को प्रलोभन मुक्त बनाने की प्रेरणा देते हुए संतश्री ने कहा कि तपस्या के दो दोष है: प्रलोभन और प्रतिस्पद्र्धा। तपस्या को लेनदेन व जीमणवारियों से मुक्त रखें ताकि वह अंतर्मन की निर्मलता देने वाली सिद्ध हो सके। उन्होंने संतों से निवेदन किया कि वे तपस्या को प्रलोभन से न जोड़ें। प्रलोभन देकर तपस्या करवाना कौनसा धर्म है? अब सिक्कों की या लड्डू-पेडों की प्रभावना करने की बजाय जीवन को परिवर्तित करने वाली प्रभावना की जरूरत है।
समिति के उपाध्यक्ष श्री मनोज बनवट ने बताया कि कोरा केन्द्र मैदान में आयोजित विराट सत्संग महाकुंभ के समापन के बाद राष्ट्रसंतों का प्रवास मां मांगल्य भवन, योगीनगर सर्कल के सामने, लिंक रोड़, बोरीवली वेस्ट में रहेगा जहां वे श्रद्धालुओं को धर्म और अध्यात्म चर्चा  का रसपान करवाएंगे।

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