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ज्ञान वाणी

भक्ति के प्रभाव से आसक्ति नहीं टिकती: मुनि संयमरत्न विजयजी

भक्ति के प्रभाव से आसक्ति नहीं टिकती: मुनि संयमरत्न विजयजी

चैन्नई-बैंगलोर हाइवे स्थित नव वर्ष पूर्व आचार्य श्री जयन्तसेनसूरिजी द्वारा प्रतिष्ठित व श्रीमती चाँदकवर मिश्रीमल भंडारी परिवार द्वारा निर्मित श्री गुरु राजेन्द्र शताब्दी तीर्थ का दसवां ध्वजारोहण मुनि संयमरत्न विजयजी,श्री भुवनरत्न विजयजी के सान्निध्य में 18 दिसंबर को संपन्न हुआ। मुनि श्री ने कहा कि कर्म सजा से मुक्ति दिलाने का सामर्थ्य रखती है ध्वजा।लहराती हुई ध्वजा हमें अहं से अर्हं की ओर ले जाने का संकेत देती है।ध्वजा हमें अहंकार के अंधकार से दूर ले जाकर सरलता व समता के प्रकाश की ओर ले जाती है।

जिनालय पर लहराती हुई ध्वजा में श्वेत वर्ण अरिहंत का प्रतीक है तो लाल वर्ण सिद्ध का प्रतीक है।जब तक तक शरीर है,तब तक प्रवृत्ति चलती रहती है।यदि प्रवृत्ति करते समय आसक्ति भाव न हो तो व्यक्ति कर्मबंधन से बच सकता है।पाप कर्म बंधने का मुख्य कारण आसक्ति ही है।अटैची रखना बुरा नहीं,अपितु अटैची से अटैचमेंट हो जाना बुरा है।

आवश्यक कार्य करते हुए भी यदि व्यक्ति आसक्ति से बचने का प्रयास करता रहे, तो भी काफी कर्म बंधनों से बच सकता है और कर्म का बंधन होगा,तो भी वह हल्का होगा,विशेष कष्टदायक नहीं होगा।सम्यक् दृष्टि जीव संसार में रहता हुआ भी कमल की भांति निर्लेप रहता है।दुःख का मूल कारण आसक्ति ही है।जहाँ भक्ति का प्रभाव होता है,वहाँ आसक्ति नहीं टिकती।

आसक्ति रहित जीव सदैव सुखी रहता है।स्थायी सुख प्राप्त करने हेतु प्राणी को घटना के साथ जुड़ने की अपेक्षा उसे मात्र देखने का पुरुषार्थ करना चाहिए।हाथी के कीचड़ में फँस जाने पर जैसे हाथी का निकलना भारी हो जाता है,वैसै ही आसक्ति के कीचड़ में फँस जाने पर इंसान का बाहर आना मुश्किल हो जाता है।आसक्ति ऐसी है, जो आ तो सकती है,पर जा नहीं सकती।

जिनालय की वर्षगांठ हमें यही कहती है कि हमारा नया वर्ष ऐसा हो कि किसी के प्रति हमारे मन में गाँठ न रहे,क्योंकि गन्ने की तरह जहाँ गाँठ होती है ,वहाँ मिठास नहीं रहती।भंडारी परिवार ने मुनि श्री को कामली ओढायी।ध्वजारोहण के पश्चात् मुनिद्वय श्री ने शिखरजी तीर्थ(झारखंड) की ओर विहार किया।

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