-चतुर्विध धर्मसंघ ने दी स्मरण व अर्पित की भावांजलि
चेन्नई. माधवरम में चातुर्मास प्रवास स्थल परिसर स्थित ‘महाश्रमण समवसरण’ प्रवचन पंडाल में विराजित आचार्य महाश्रमण के सान्निध्य में तेरापंथ धर्मसंघ के प्रणेता आचार्य भिक्षु का जन्मदिवस ‘बोधि दिवस’ के रूप में मनाया गया। इस अवसर पर आचार्य ने आचार्य भिक्षु के जीवन वृत्तांत सुनाते हुए उनके जीवन से सीख लेने की प्रेरणा दी।
आचार्य ने कहा आचार्य भिक्षु का जन्म आषाढ़ शुक्ल त्रयोदशी को हुआ था। उस क्षेत्र का गौरव बढ़ जाता है, जहां जन्म लेने वाला बच्चा विशिष्ट पुरुष बन जाता है। राजस्थान के मारवाड़ क्षेत्र के कंटालिया गांव में जन्मे आचार्य भिक्षु संत बनने से पूर्व गृहस्थ भी रहे। आदमी के वर्तमान जीवन पर पूर्वजन्म का भी प्रभाव होता है जिसके कारण कोई आदमी शांत, कोई क्रोधी, कोई बुद्धिमान तो कोई मूर्ख हो जाता है।
आचार्य ने उनके जीवनकाल की घटनाओं पर प्रकाश डालते हुए कहा उनकी माता दीपाजी उन्हें दीक्षा की आज्ञा देने से बार-बार इनकार करती रही तो उनके गुरु आचार्य रघुनाथजी ने उनको ऐसी प्रेरणा दी कि उन्होंने दीक्षा की आज्ञा दे दी। बगड़ी में उनकी दीक्षा हुई। अब वे संत भिखणजी बन गए। अपनी प्रखर बुद्धि और कुशल प्रशिक्षण से उनका प्रभाव बढऩे लगा और वे एक प्रखर संत बने।
बाद में उन्होंने सत्य के मार्ग पर चलने के लिए अपनी स्थानकवासी परंपरा को छोड़ नए पंथ का प्रतिपादन किया जो आज तेरापंथ के रूप में स्थापित है। ऐसे आचार्य भिक्षु का जन्मदिवस ‘बोधि दिवस’ के रूप में प्रतिष्ठित है। आज के दिन हम उनको श्रद्धा से वंदन करते हैं। उनसे हम सभी को प्रेरणा और संरक्षण मिलता रहे।
इससे पूर्व महाश्रमणी साध्वीप्रमुखा ने आचार्य भिक्षु के जीवन पर प्रकाश डालते हुए उनकी कठोर आचार की साधना को व्याख्यायित किया। साथ ही मुनि योगेशकुमार, मुनि मननकुमार व साध्वी जिनप्रभा एवं साध्वी प्रमिलाकुमारी व समणी कुसुमप्रज्ञा ने भी भावाभिव्यक्ति दी।
गौतमचंद सेठिया ने आचार्य भिक्षु के प्रति अपनी प्रणति अर्पित की। जैन विश्व भारती के अध्यक्ष व चेन्नई चातुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के महामंत्री रमेश बोहरा व अन्य ने भगवई खण्ड-1 की प्रश्न पुस्तिका आचार्य के समक्ष लोकार्पित की।