जैन श्वेतांबर तेरापंथ धर्म संघ के ग्यारहवें अनुशास्ता आचार्य श्री महाश्रमणजी के सान्निध्य मे बेंगलुरु मे मासखमण (एक माह तक निराहार तप) और उससे अधिक दिनों की तपस्या का कीर्तिमान रचा गया। आचार्य श्री के सान्निध्य मे अब तक साठ से ज्यादा लोगों ने यह तप कर लिया है।
कुछ लोगों ने तो चालीस से भी अधिक दिनों की तपस्या कर ली है और एक बहन ने 61 दिन तक का तप किया है। उल्लेखनीय है कि इससे पहले सन 2018 के चेन्नई में आचार्याश्री महाश्रमणजी के सान्निध्य में 57 मासखमण और उससे अधिक दिनों की तपस्या का कीर्तिमान रचा गया था, लेकिन उसके एक साल बाद ही बेंगलुरु में नया कीर्तिमान रच दिया गया।
अब भी कई लोग मासखमण की तपस्या में तल्लीन बने हुए हैं। बेंगलुरु मे आचार्याश्री के सान्निध्य में आठ और उससे ज्यादा दिनों का तप करने वाले श्रद्धालुओं की संख्या तो 500 से भी ज्यादा है।
शांतिदूत आचार्याश्री महाश्रमण ने मंगलवार को आयोजित आचार्य तुलसी चेतना केंद्र में आयोजित कार्यक्रम के दौरान अपने प्रवचन मे कहा कि आदमी को भौतिक अनुकूलताएं उपलब्ध होती हैं, उसमें भी उसके अच्छे अर्थात पुण्य कर्मों का योगदान रहता है और भौतिक प्रतिकूलताएं प्राप्त होती हैं तो उसमें उसके बुरे अर्थात पाप कर्मों का योगदान है। आदमी को यह सोचना चाहिए कि पिछले कर्म तो वह भोग रहा है, किन्तु वह भविष्य के लिए क्या कर रहा है।
कोई राहगीर घने और लंबे जंगल से दूसरे स्थान पर जाना चाहता तो वह भोजन, पानी आदि कि व्यवस्था साथ में लेकर जाए, तो मार्ग में भूख-प्यास को शांत कर सकता है, अन्यथा उसे मार्ग में कठिनाई का सामना करना पड़ सकता है। इसी प्रकार व्यक्ति को अगले जन्म के लिए आध्यात्मिक पाथेय के संचय का प्रयास करना चाहिए। आदमी को आत्मोत्थान के लिए पापाचरण से बचना चाहिए तथा सदाचार और शुभाचार में रहना चाहिए।
आचार्यश्री ने रोचक कथानक के माध्यम से सदाचरण को अपनाकर आगामी जीवन को प्रशस्त बनाने की भी प्रेरणा दी। आचार्याश्री ने स्वयं द्वारा लिखित अपने गुरु आचार्यश्री महाप्रज्ञजी के जीवनवृत्त ‘महात्मा महाप्रज्ञ’ का वाचन करते हुए उनके जीवन के तीसरे दशक की कुछ घटनाओं का वर्णन भी किया। कार्यक्रम में आज भी मासखमण तप के प्रत्याख्यान का उपक्रम रहा।
तेरापंथ महिला मण्डल, गांधीनगर की अध्यक्ष श्रीमती शांति सकलेचा ने कार्यक्रम में विशेष रूप से उपस्थित डॉ. बी. डी. पटेल का परिचय प्रस्तुत किया। तत्पश्चात डॉ. पटेल ने अपनी विचारभिव्यक्ति देते हुए कहा–‘शास्त्रों के गनह ज्ञान को सहज सरल शब्दों को सामान्यजन को प्रदान करने के लिए मैं आचार्यश्री महाश्रमणजी के चरणों में प्रणाम अर्पित करता हूँ।’ आचार्याश्री ने इस संदर्भ में श्रीमदभगवद्गीता के श्लोकों के आधार पर उद्बोधन प्रदान किया। एक जैनाचार्य के मुख से गीता के श्लोकों को धाराप्रवाह सुनकर उपस्थित जनमेदिनी चकित थी।
गत रात्रि में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरकार्यवाह श्री भैयाजी जोशी ने शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी के दर्शन कर मंगल आशीर्वाद प्राप्त किया। आचार्याश्री ने उनसे कुछ समय वार्तालाप कर उन्हें पावन पथदर्शन दिया।