चेन्नई. एमकेबी नगर जैन स्थानक में विराजित साध्वी धर्मप्रभा ने कहा संतोष वह पारस पत्थर है जिसके संसर्ग में आने पर अवगुणों से भरा जीवन भी सरलता से पूर्ण हो सकता है। संतोष व्यक्ति हर स्थिति में शांत व सुखी रहता है। जीवन के उपयोग में सुवास को आमंत्रित करने के लिए आवश्यक है। सद्गुणों से सुशोभित चित्तवृत्तियों के पौधे जीवन के उपवन में रोपित हों। संतोषी साधक कभी कोई पाप नहीं करते।
असंतोषी इंद्र और चक्रवर्ती को भी सुख नहीं मिलता। संतोष रूपी अमृत से तृप्त एवं शांत हृदयी पुरुषों के पास जो सुख है वह सुख धन के लोभ में इधर-उधर भटकते हुए लोभी पुरुषों के पास कहां होता है। असंतुष्ट व्यक्ति को यत्र-तत्र सर्वत्र भय रहता है। साध्वी स्नेहप्रभा ने कहा जिस प्रकार मनुष्य जल के बिना प्यास नहीं बुझा सकता, उसी प्रकार जीप धर्म से विहीन सुख नहीं पा सकता। बिना धर्म के चक्रवर्ती का जीवन भी पशु समान निकृष्ट होता है, उसे अंतत: दुर्गति का भाजन बनना पड़ता है।
मानव जन्म पाकर जो आत्मा धर्म श्रवण करती है और श्रद्धा करती है, उसके अनुसार पुरुषार्थ व आचरण करती है वह तपस्वी आत्मा कर्मों के बंधन को रोकती हुई संचित कर्मों को क्षीण करके मिटा देती है। आज की स्थिति यह है कि धर्म के नाम पर लडऩे वाले और धर्म का उपदेश देने वाले तो बहुत हैं लेकिन आचरण करने वाले एवं श्रद्धा करने वाले बहुत कम हैं। संसार में कई प्रकार का बल होता ैहै लेकिन सबसे श्रेष्ठ बल धर्म का होता है।