चेन्नई. आचार्य विमल सागर सूरी ने कहा कि जैन परम्परा के प्राचीन मूल शास्त्रों को आगम कहा जाता है। किसी जमाने में वे 84 से अधिक थे। आज 45 आगमों से निबद्धित एक लाख 25 हजार श्लोक प्रमाण मूल धर्मशास्त्र जैन परम्परा की सबसे महत्वपूर्ण विरासत है।
कालांतर में उन मूल आगम शाों पर टीकाएं, भाष्य, वृत्तियां, और चूर्णिया लिखी गई हैं। आधुनिक काल में कुछ के विभिन्न भाषाओं में भाषांतरण भी हुए। जैन परम्परा में आगम शास्त्रों को मंदिरों एवं मूर्तियों की तरह ही महत्वपूर्ण समझा है। जैन मंदिरों की तरह ज्ञान मंदिर भी बनाए जाते हैं। मूर्तियों की तरह ज्ञान व शास्त्रों की पूजा की जाती है।
वेपेरी स्थित बुद्धि वीर वाटिका में जैनाचार्य ने कहा कि जैन परम्परा में साहित्य पर बहुत काम हुआ है। यहां ज्ञान उपासना एवं धर्म शास्त्रों के श्रवण को श्रेष्ठ साधना कहकर उस पर बहुत भार दिया गया है।
हजारों वर्षों से ज्ञान की यह उपासना परम्परागत चलती रही है। भगवान महावीर का अमर सूत्र हैं कि बिना धर्मशास्त्रों के श्रवण के ज्ञान की उपलब्धि नहीं हो सकती।
सबसे पुराने आगम शास्त्र भगवती सूत्र में महावीर अपने शिष्य गौतम से कहते हैं कि ज्ञान श्रवण का फल है। संस्कृत में जैन गृहस्थों को श्रावक कहा जाता है।