वेपेरी स्थित जयवाटिका मरलेचा गार्डन में विराजित जयधुरंधर मुनि ने कहा कि मनुष्य को यदि सिद्धाचल को प्राप्त करना है तो उसको सीधा चलना होगा, सरलता को अपनाना होगा।
यही गुण मित्रता को बढ़ाते हैं, जबकि इसके विपरीत वक्रता , टेढ़ापन शत्रुता को बढ़ाती है, उसका त्याग करना चाहिए। दूसरों को ठगने वाला स्वयं ठगा जाता है। महापुरुषों की जिव्हा नहीं जीवन बोलता है।
मुनि ने कहा कि बगुला की श्रेणी में आने वाला भक्त को भगवान नहीं मिल सकता। मनुष्य की विविध श्रेणियों को बताते हुए कहा कि व्यक्ति को हंस के गुणों को धारण करना चाहिए। जो बाहर से भी सफेद दिखता है दिल से भी सफेद होता है ।
कथनी और करनी में फर्क नहीं होता यही मनुष्य की श्रेष्ठ श्रेणी है । दूसरी श्रेष्ठ श्रेणी में वह व्यक्ति आता है जिसकी वाणी और हृदय दोनों ही कठोर होते हैं जैसे कौआ बाहर भी काला अंदर भी काला।
ऐसे व्यक्ति निम्न श्रेणी में आते हैं। तीसरे श्रेणी का व्यक्ति वह होता है जो बाहर से सज्जन दिखाई देता है, मगर भीतर से काले होते हैं। धार्मिक क्रियाओं से जीवन में सकारात्मक एवं गुणात्मक परिवर्तन लाना ही सच्चे धर्म आराधन का मापदंड है। मुनिवृंद के सानिध्य में 11 अगस्त को आचार्य शुभचन्द्र का 81 वां जन्मदिवस मनाया जायेगा।